Smile please: ‘मानवता’ हमारी अमूल्य विरासत, रखें इसे सहज कर

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Feb, 2023 08:02 AM

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अपने समस्त ज्ञान, वैज्ञानिक अनुसंधान, खोज, बड़े-बड़े इंजीनियरिंग, चिकित्सा शास्त्र तथा भौतिक समृद्धि के साधनों के बावजूद हम देखते हैं कि आज आधुनिक मनुष्यों में से मनुष्यत्व का पतन होता जा रहा है और

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Smile please: अपने समस्त ज्ञान, वैज्ञानिक अनुसंधान, खोज, बड़े-बड़े इंजीनियरिंग, चिकित्सा शास्त्र तथा भौतिक समृद्धि के साधनों के बावजूद हम देखते हैं कि आज आधुनिक मनुष्यों में से मनुष्यत्व का पतन होता जा रहा है और उनकी मानवता का क्रमश: ह्रास होता जा रहा है। जिस चीज को हम ‘मानवता’ कह कर गर्व करते थे, दुर्भाग्य से वह निरन्तर खत्म होती जा रही है। आज, मनुष्य- मनुष्य का शत्रु हो गया है, सभ्यता का ढोंग रचा कर, सफेद कपड़ों की आड़ में, वह ऐसे दुष्कर्म कर रहा है। ऐसा लगता है कि मनुष्य के अन्दर बर्बर युग से सोया हुआ हैवान या शैतान जैसे आज जागृत हो गया है।

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हमारे शास्त्रों के मतानुसार पूर्व जन्म के कर्मों के परिणामस्वरूप ही बुरे और भले फल की प्राप्ति होती है। अपने पूर्व जन्मों के संचित कर्मों का फल भोगने के लिए ही जीवात्मा भौतिक शरीर में आती है और संसार में भ्रमण करते हुए वह भविष्य के लिए ‘क्रियमाण-कर्म’ करती रहती है।

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मानवता को यदि सरल शब्दों में परिभाषित करना हो तो यही कहेंगे कि ‘अपने आंतरिक सद्गुणों का विकास कर, हर मानव के साथ सद्व्यवहार करना और दूसरों के आंतरिक सुषुप्त सद्गुणों को जाग्रत करना ही सच्ची मानवता है।’  

भारतीय संस्कृति तो हमें यही सिखाती है कि अपने पास यदि एक ही रोटी है, तो उसमें से भी आधी किसी भूखे को देकर उसकी दुआ का पात्र बनना चाहिए परन्तु आज समाज की स्थिति कुछ विचित्र-सी हो गई है और इसीलिए मानवतावादियों को यह ध्यान में रखने की आवश्यकता है कि भूखे को अन्न और दीन-हीन को धन का दान देने के साथ-साथ उन्हें सच्चे ज्ञान-धन का भी दान देना आवश्यक है, ताकि वह प्राप्त हुए भौतिक दान का सदुपयोग कर सकें और उसे गलत कार्य में लगाने से बच जाएं।

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इसी के साथ उस दीन-हीन में कर्तव्यपरायणता, कर्मठता, स्वनिर्भरता, स्वाभिमान एवं आत्मविश्वास आदि गुणों का बीजारोपण करना भी अति आवश्यक है, अन्यथा परिणाम यह होगा कि हम तो अपनी मानवता की फर्जअदाई अर्थ दान देते रहेंगे और सामने वाले की लेने की आदत पक्की बनती जाएगी तथा वह कर्मों की गहन गति से वंचित ही रह जाएगा। उसमें आलस्य एवं निकम्मेपन के संस्कार पनपते जाएंगे। अत: हमें सदैव यह ध्यान देना है कि हमारे क्षणिक मानवता के प्रदर्शन में कहीं किसी का सदा के लिए अकल्याण न हो जाए।   

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