Smile please: गलतफहमी के जहर का सेवन न करें

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Jun, 2023 09:33 AM

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किसी ने सही कहा है कि ‘गलतफहमी का एक पल इतना जहरीला होता है, जो प्यार भरे सौ लम्हों को भी एक क्षण में भुला देता है’। आज समस्त विश्व में जो झगड़े, अनबन, मनमुटाव, तनाव,

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Smile please: किसी ने सही कहा है कि ‘गलतफहमी का एक पल इतना जहरीला होता है, जो प्यार भरे सौ लम्हों को भी एक क्षण में भुला देता है’। आज समस्त विश्व में जो झगड़े, अनबन, मनमुटाव, तनाव, संबंधों में कटुता तथा स्नेह और सहयोग में अभाव दिखाई देता है, उसका एक कारण व्यक्तियों, संगठनों, सम्प्रदायों, दलों या देशों में परस्पर गलतफहमी ही तो है। गलतफहमी से जब पारस्परिक संबंध बिगड़ जाते हैं तो बात फिर बिगड़ती ही चली जाती है।

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अगर समझदारीपूर्वक गलतफहमी को दूर न किया जाए तो यह उस अमरबेल की तरह है, जो वृक्ष पर बढ़ती ही चली जाती है और वृक्ष की सारी शक्ति को हड़प लेती है। यह वह बला है जो न केवल मनुष्य की मानसिक शक्ति, शांति और खुशी को हड़प लेती है, अपितु वह उसे इतना थका देती है कि उसे अपने किसी कार्य से इतनी थकावट नहीं होती, जितनी परस्पर गलतफहमी से होने वाले परिणामों के कारण बने हुए वातावरण से होती है।

अत: गलतफहमी को दूर करना जरूरी है क्योंकि इसके बने रहने से कई लोगों में बीमारियां पैदा हो जाती हैं और उनके लिए जीना भी कठिन हो जाता है।

गलतफहमी पैदा होने के कई कारण हो सकते हैं। मसलन, इस कलियुगी संसार में कुछ लोगों का स्वभाव ही ऐसा है कि वे ईर्ष्यावश अथवा अपना कोई स्वार्थ सिद्ध करने के लिए बात को बदलकर अथवा इधर की उधर और उधर की इधर बात कहकर जान-बूझकर दो व्यक्तियों में गलतफहमी पैदा करते हैं।

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ऐसे में मनुष्य को चाहिए कि जब एक व्यक्ति उसे कहता है कि अमुक व्यक्ति ने तुम्हारी निंदा की है, तो वह स्वयं ही नम्रता से उस व्यक्ति के पास जाकर उससे सीधा संवाद करे और पूछ ले, ताकि भ्रांति पैदा करने वाला व्यक्ति अपने कुप्रयत्न में सफल न हो पाए और आगे के लिए भी ऐसे हथकंडों से बाज आ जाए।

संसार में कुछ लोग ऐसे भी देखने को मिलते हैं, जो हमारे बारे में स्वयं भी अपने मन में गलतफहमियां बिठा लेते हैं और साथ-साथ दूसरों में भी ढोल पीट-पीट कर गलतफहमी के ऐलान करते रहते हैं। समझाने-बुझाने पर और हमारी शुभ भावना होने के बावजूद वे अपने इस रवैये को नहीं छोड़ते, ऐसे में हम क्या करें ?

समाज कहता है कि हमें ऐसी परिस्थिति में यह दृढ़ भावना बनाए रखनी चाहिए कि अगर वे अपनी इस प्रवृत्ति को नहीं छोड़ सकते तो हम अपनी सज्जनता को क्यों छोड़ें !

हमें यह सदैव याद रखना चाहिए कि कर्मों का हिसाब-किताब प्रबल होता है। सब सुखी हों, सबका भला हो, जो भला करता है उसका भी भला हो और जो भला नहीं करता उसका भी भला हो, इसी शुभचिन्तन में भलाई है और इसी से हम सदा खुश व शांति से रह सकेंगे।  

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