Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Jun, 2023 09:34 AM
मनुष्य जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति में अहंकार एक प्रबल शत्रु है, इस बात से कोई भी इंकार नहीं करेगा क्योंकि सभी भेद ‘अहं’ भावना से ही उत्पन्न होते हैं। इसके उत्पन्न होते ही काम
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Smile please: मनुष्य जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति में अहंकार एक प्रबल शत्रु है, इस बात से कोई भी इंकार नहीं करेगा क्योंकि सभी भेद ‘अहं’ भावना से ही उत्पन्न होते हैं। इसके उत्पन्न होते ही काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकार उठ खड़े होते हैं। इन्हें बाहर से बुलाना नहीं पड़ता, अहंकार स्वत: भेद-बुद्धि के प्रसंग से इन्हें अंत:स्थल में पैदा कर ही देता है। तभी तो कहा जाता है कि ‘अहंकारी मनुष्य को एक न एक दिन लज्जित होकर सिर नीचा करना ही पड़ता है।’
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आदि काल से मनुष्य इस प्रयत्न में है कि वह अभिमान से मुक्त हो जाए और इसी के लिए नाना प्रकार के प्रयत्न करता रहा है परंतु दुर्भाग्यवश हम लगभग सभी जीवन भर अभिमान रूपी इस माया के जाल में फंसे ही रहते हैं। अपनी बुद्धि को सबसे अधिक महत्व प्रदान करते हैं, अपनी चीज, बाल-बच्चे, विचार, दृष्टिकोण, घर-बार पर अभिमान करते रहते हैं।
इसी मिथ्या अभिमान के कारण हम जीवन में और बड़ी बातें सम्पन्न नहीं कर पाते और जहां के तहां पड़े रह जाते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि आज मनुष्य जिस धन का गर्व करता है, कल वही धन उसका साथ छोड़ सकता है क्योंकि उसे तो चंचल माना गया है। इसी प्रकार से आज हमें जिस तन-शक्ति या जन-शक्ति का अभिमान है, वह भी तो एक दिन हमें छोड़ जाने वाली है। यह सब, मनुष्य को दूसरों की जीवन-गाथा से भी मालूम होता है और प्रत्यक्ष भी दिखाई पड़ता है, तो फिर उसे अभिमान किस बात का ?
आखिर क्या है यह अहंकार, जो नुक्सानदायक होते हुए भी हम उसे छोड़ने को तैयार नहीं होते ?
सुप्रसिद्ध उपन्यासकार सी.एस.लुईस ने लिखा है कि ‘‘अहंकार की तृप्ति किसी चीज को पाने से नहीं, अपितु उस चीज को दूसरे के अपेक्षा ज्यादा पाने से होती है।’’
आज विश्व में अशांति की सारी समस्याएं अहंकार के ही कारण हैं, जिसे हम सभी प्रत्यक्ष देख और समझ भी रहे हैं। कोई स्वयं को सेठ माने बैठा है तो कोई धनी-दानी। कोई स्वयं को नेता मानकर अभिमान कर रहा है तो कोई अभिनेता। इस प्रकार सभी अपने अहंकार के नशे में चूर हैं परंतु उन्हें यही मालूम नहीं कि जो कुछ भी उनके पास है, वह तो अल्पकालीन है, यहां तक की उनकी अपनी देह का भी कोई भरोसा नहीं।
अब जो समझदार होगा, वह इस तथ्य को जान अपने मिथ्या अभिमान को त्यागकर स्वाभिमान को जागृत कर झूठी माया के प्रभाव से बहार निकल आएगा और जो अपने पद, नाम, मान और झूठी शान के अहंकार में रहेगा, वह एक दिन सबके सामने जलील होकर अपने स्वाभिमान को भी खो देगा।
जो व्यक्ति खुद को सर्वोपरि मानकर चलता है, उसे सुधार की बात सोचने का अवसर ही कहां मिलता है ? ऐसे मनुष्य तो हवा भरे पानी के बुलबुले की तरह अंत में उपहास का पात्र बन नष्ट हो जाते हैं। अत: हम हर सफलता प्राप्त करते वक्त आत्म-निरीक्षण करते रहें कि कहीं इससे हमारा अहंकार तो नहीं बढ़ा और यदि बढ़ा हो तो समझिए कि लाभ की अपेक्षा हमारी हानि ही अधिक हुई है।
समस्त संसार के स्वामी परमपिता परमात्मा अपनी सत्ता का अहंकार नहीं रखते, तो क्या कारण है कि हम जैसे अरबों व्यक्तियों के होते हुए हम खुद को सबसे महत्वपूर्ण मान दूसरों से टक्कर लेते फिरें। बेहतर होगा कि हम अहंकार रूपी इस बीमारी से सदा के लिए मुक्ति प्राप्त करें, अन्यथा यह खतरनाक बीमारी हमारे जीवन को संपूर्णत: उजाड़ सकती है।