Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Sep, 2023 08:30 AM
सारा विश्व एक सूत्र में बंध सकता है, यदि हम सारे संसार को एक कुटुम्ब के रूप में देखें और प्रत्येक मनुष्य से उसी तरह प्रेम करें जिस तरह हम अपने परिवार के सदस्यों के साथ करते हैं।
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सारा विश्व एक सूत्र में बंध सकता है, यदि हम सारे संसार को एक कुटुम्ब के रूप में देखें और प्रत्येक मनुष्य से उसी तरह प्रेम करें जिस तरह हम अपने परिवार के सदस्यों के साथ करते हैं। प्राकृतिक रचना की दृष्टि से भी देखा जाए तो सभी मनुष्य एक ही परिवार के सदस्य हैं।
क्योंकि परिवार उसे माना जाता है जहां खून का संबंध स्थापित हो सके और संसार के किसी भी कोने के मानव का खून, संसार के किसी भी कोने के अन्य मानव को चढ़ाया जा सकता है। जहां तक खून के ग्रुप की बात है, वह तो पिता और पुत्र का भी अलग-अलग हो सकता है, अन्यथा जाति, कुल आदि के आधार पर खून की भिन्नता नहीं है। हम जानते हैं, एक ही केन्द्र से निकलने वाले जल की कालांतर में अनेक धाराएं बन जाती हैं।
इसी प्रकार, लंबे समय तक यदि दो सगे भाई भी बिछुड़ जाएं और अपनी-अपनी पहचान खो दें तो उनमें भी बेगानापन आ जाता है। कुछ ऐसा ही इस विश्व परिवार के साथ भी हुआ है। बीज और तने की सही जानकारी न होने के कारण कालांतर में निकली शाखाएं अपने को ही मूल वृक्ष मान बैठी हैं और इस प्रकार शाखाएं, उप-शाखाएं, टहनियां आपस में टकराने लगी हैं। अब, वृक्ष का बीज बोल नहीं सकता, नहीं तो वह बताता कि कौन-सी शाखा पहले आई, कौन-सी बाद में अर्थात् वृक्ष के क्रमवार विकास की जानकारी वह देता परंतु सृष्टि रूपी वृक्ष का बीज परमात्मा तो चेतन है।
जब वह देखता है कि वैश्विक भावना को भूलकर उसके बच्चे छोटे-छोटे समूहों में बंट गए हैं और एक-दूसरे से कट गए हैं, उनका प्रेम संकुचित और स्वार्थपरक हो गया है, तब ऐसे माहौल को मिटाने के लिए वह स्वयं इस सृष्टि पर अवतरित होकर हम मनुष्यों को एक विश्व-परिवार की भावना से जोड़ने का महान कार्य करते हैं।
आज भ्रष्टाचार सहित अनेकानेक समस्याओं से देश और विश्व जूझ रहा है। सभी में यदि विश्व परिवार की श्रेष्ठ भावना घर कर जाए तो इन समस्याओं को छू मंतर होने में देरी नहीं लगेगी। थोड़े जल में काई और कीड़े पैदा होते हैं, परन्तु समुद्र के अथाह जल में नहीं। अत: हमें यह समझना चाहिए की मेरे-मेरे की भावनाएं ही समस्याओं को जन्म देती हैं, इसीलिए आज आवश्यकता है अपनी भावनाओं को विशालता का रूप देने वाले प्रशिक्षण की।
हम सभी धर्म के सही मार्ग का अनुसरण करें, जो कहता है कि ‘हम सभी एक हैं और एक परमात्मा की सन्तान हैं’। इसी भावना से निर्मित होगा सार्वभौमिक सद्भाव का वातावरण।