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Smile Please: जीवन की अनमोल पूंजी-प्राकृतिक उपहार है बुढ़ापा

Edited By Prachi Sharma,Updated: 18 Jan, 2025 12:11 PM

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वे घर संस्कारहीन होते हैं जो बुजुर्गों से खाली होते हैं। वे परिवार और कबीले अभिशप्त होते हैं जिनमें बुजुर्गों का तिरस्कार होता है। बुजुर्ग वंश की मर्यादा होते हैं और काफिलों के रहगुजर भी।

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Smile Please: वे घर संस्कारहीन होते हैं जो बुजुर्गों से खाली होते हैं। वे परिवार और कबीले अभिशप्त होते हैं जिनमें बुजुर्गों का तिरस्कार होता है। बुजुर्ग वंश की मर्यादा होते हैं और काफिलों के रहगुजर भी।

वे पीढिय़ों की रीढ़ भी होते हैं और संस्कृतियों के संस्कार भी। वे अंकुश भी हैं, अनुशासन भी हैं, विरासत भी। शायद इसीलिए ये बुजुर्ग पीढिय़ां बच्चों की पहली पसंद होती हैं, जिनकी छातियों पर वे सिर रखकर इतने संस्कार पा लेते हैं, जितने शायद ही अपने माता-पिता से हासिल कर पाते।

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अच्छे संस्कारों के बीज विरासत की जमीन पर उगते हैं और जमीन कभी बूढ़ी नहीं होती। एक तरफ जहां उनके पास पर्वतों का भूगोल होता है, वहीं दूसरी ओर उनके पास होता है समुंदरों के गर्भ में छुपे हुए रहस्यों का इतिहास।

बुजुर्ग रेगिस्तान का विस्तार भी हैं, मैदानों की खुशहाली भी। वे घने जंगलों का तजुर्बा भी हैं और झरनों से फूटती नदियों का बहाव भी। मनुष्य जीवन की आधी सदी सामथ्र्यहीन नहीं हो सकती। उसके जीवन की चारों अवस्थाएं समाज का ताना-बाना बुनती हैं। शैशव, तरुणाई, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था चारों ही अवस्थाओं में मनुष्य सामथ्र्यवान रहता है। उसका सामथ्र्य हर अवस्था में नए रूप में अभिव्यक्त होता है। शैशव में आकर्षण होता है, यही उसका सामर्थ्य है। तरुणाई ज्ञान को कर्मठता के माध्यम से प्रकट करने की ताकत रखती है। प्रौढ़ावस्था का सामर्थ्य उसकी योजनाकारिता होती है और वृद्धावस्था मार्गदर्शन की क्षमता का सामर्थ्य रखती है।

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वास्तविकता यह है कि वृद्धावस्था का सामथ्र्य अत्यंत विशिष्ट होता है और उसका उपयोग परिवार, समाज और राष्ट्र के हित में युवा पीढ़ी बखूबी कर सकती है। जीवन की प्रत्येक अवस्था की अपनी खूबियां होती हैं। प्रकृति में किसी एक अवस्था में किसी एक गुण का क्षरण होता है तो दूसरे गुणों का उदय होता है। जीवन की कोई भी अवस्था प्रकृति की विशेषताओं से पूरी तरह वंचित नहीं होती।

शारीरिक और मानसिक क्षमता में बढ़ती उम्र के साथ आई कमी के कारण ये सामथ्र्यहीन हो जाते हैं, ऐसा सोचना पूरी तरह गलत है। बुजुर्गों का अनुभव उनकी शारीरिक क्षमता में आई कमी को पूरा कर देता है। वे अंतिम समय तक परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए तो निश्चित ही उपयोगी रहते हैं।                                

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