Somvati Amavasya: युधिष्ठिर का सोमवती अमावस्या को दिया गया श्राप, कलयुग के लिए बना वरदान

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 Sep, 2024 01:15 AM

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सोमवती अमावस्या एक विशेष हिन्दू त्यौहार है, जो श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह अमावस्या का दिन सोमवार को पड़ने पर सोमवती अमावस्या कहलाता है। इस दिन को लेकर कई धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं हैं, जो

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Somvati Amavasya 2024: सोमवती अमावस्या एक विशेष हिन्दू त्यौहार है, जो श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह अमावस्या का दिन सोमवार को पड़ने पर सोमवती अमावस्या कहलाता है। इस दिन को लेकर कई धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं हैं, जो इसे विशेष बनाती हैं। सोमवती अमावस्या के मौके पर पित्तरों की आत्मिक शांति और मोक्ष की कामना के लिए पिंडदान किया जाता है। यह दान अधिकतर पवित्र नदियों पर किया जाता है लेकिन कैथल के फल्गु तीर्थ का विशेष महत्व माना गया है। श्राद्ध कर्म के लिए कुरुक्षेत्र की सीमा में आने वाले तीर्थों में फल्गु तीर्थ के विषय में महाभारत के ग्यारहवें पर्व में विस्तार से चर्चा है।

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महाभारत के वन पर्व के अनुसार युद्ध की समाप्ति पर युधिष्ठिर को इस बात की चिंता हुई कि इस युद्ध में दिवंगत आत्माओं को किस प्रकार शांति व मुक्ति मिले।

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श्रीकृष्ण के कहने पर युधिष्ठिर शरशय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह के पास गए और बंधुओं सहित अपनी व्यथा कही।

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पितामह ने कहा कि, 'युद्ध में मारे गए मृत लोगों का पिंडदान फलकी वन के सरोवर पर करें क्योंकि किसी समय फलकी ऋषि ने तपस्या से उस भूमि को पवित्र किया था।'

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इस तीर्थ में यदि ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाए या द्विज श्रेष्ठ को प्रणाम करके एक मुट्ठी तिल दें या तिलों से युक्त तिलांजलि दी जाए या फिर कहीं से एक दिन का चारा लाकर श्रद्धापूर्वक गौ को खिलाया जाए तो इन कृत्यों से भी पितर प्रसन्न होंगे।

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पांडवों ने सोमवती अमावस्या का काफी इंतजार किया लेकिन वर्षों के बाद सोमवती अमावस्य न आने से पांडव फल्गु तीर्थ पर पिंडदान नहीं कर सके। यहां पिंडदान न कर पाने के कारण युधिष्ठिर ने सोमवती अमावस्या को श्राप दिया था कि वह कलयुग में जल्दी-जल्दी आएगी।

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