Edited By Jyoti,Updated: 20 Sep, 2020 06:35 PM
अर्जुन ने कहा: हे शत्रुहन्ता! हे मधुसूदन! मैं युद्धभूमि में किस तरह भीष्म तथा द्रोण जैसे पूजनीय व्यक्तियों पर पलट कर बाण चलाऊंगा?
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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
अर्जुन उवाच
कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन।
इषुभि: प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन।।
अनुवाद : अर्जुन ने कहा: हे शत्रुहन्ता! हे मधुसूदन! मैं युद्धभूमि में किस तरह भीष्म तथा द्रोण जैसे पूजनीय व्यक्तियों पर पलट कर बाण चलाऊंगा?
तात्पर्य : भीष्म पितामह तथा द्रोणाचार्य जैसे सम्मानीय व्यक्ति सदैव पूजनीय हैं। यदि वे आक्रमण भी करें तो उन पर पलट कर आक्रमण नहीं करना चाहिए। यह सामान्य शिष्टाचार है कि गुरुजनों से वाग्युद्ध भी न किया जाए। यहां तक कि यदि कभी वे रुक्ष व्यवहार करें तो भी उनके साथ रुक्ष व्यवहार न किया जाए तो फिर भला अर्जुन उन पर कैसे बाण छोड़ सकता था? क्या कृष्ण कभी अपने पितामह, नाना उग्रसेन या अपने आचार्य सांदीपनि मुनि पर हाथ चला सकते थे? अर्जुन ने श्री कृष्ण के समक्ष इस आशय के तर्क प्रस्तुत किए। (क्रमश:)