Edited By Jyoti,Updated: 10 Mar, 2021 05:02 PM
रामायण का अध्ययन कर हम मोक्ष का मार्ग ढूंढते हैं। श्रीराम की लीला का हेतु केवल लीला मानकर अपने कर्त्तव्य की इति श्री कर लेते हैं।
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रामायण का अध्ययन कर हम मोक्ष का मार्ग ढूंढते हैं। श्रीराम की लीला का हेतु केवल लीला मानकर अपने कर्त्तव्य की इति श्री कर लेते हैं। कभी यह विचार नहीं करते कि उन्होंने मानव का रूप धारण कर हमें शिक्षा देने के लिए ही यह लीला की थी।
हम उनके जीवन में घटित घटनाओं का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि अपने तप व त्याग रूप जीवन से उन्होंने राष्ट्र, धर्म, समाज, राजनीति आदि सभी पक्षों पर बहुत सारगॢभत संदेश दिया है।
यह ठीक है कि रामनाम का जप करने से कल्याण होगा किंतु यदि हम उनके संदेश को जीवन में उतार लें तो हमारा परम कल्याण होगा। फिर भगवान और भक्त का अंतर समाप्त हो जाएगा, शेष रहेंगे केवल राम। हम स्वयं भी राममय हो जाएंगे।
जिस प्रकार ‘राम जन्म के हेतु अनेका, परम विचित्र एक ते एका’ उसी प्रकार उनके वनवास जाने के अनेक हेतु हैं। प्रत्यक्ष में मां कैकेयी के वरदान ने उन्हें वनवास दिया था। यह वनवास तो वे अयोध्या के बाहर कहीं भी काट लेते। उन्हें चित्रकूट तक जाने की भी आवश्यकता नहीं थी। प्रयाग के आसपास क्या वनों की कमी थी किंतु वह चित्रकूट गए जहां राक्षसों का आतंक आरंभ हो चुका था।
उसके बाद भी अत्री आश्रम होते हुए उन्होंने उस क्षेत्र में ऋषियों के लिए आतंक के पर्याय विराध का वध किया। शरभंग जी तथा सुतीक्ष्ण मुनि से मिले। फिर 10 वर्ष तक दंडक वन में भ्रमण करते हुए उन्होंने ‘निसिचर हीन करों मही, भुज उठाय पन कीन्ह’ की प्रतिज्ञा कर अपने वनवास की वास्तविक मंशा की घोषणा की थी। आज हम पाते हैं कि मनुष्य राज्य व सत्ता के लिए सभी मानवीय मूल्यों को पैरों तले रौंद रहा है। भाई-भाई की हत्या करने को तत्पर है। अधिकारों के लिए जगत में भयंकर हाहाकार मचा है।
वनवास का प्रथम उद्देश्य
व्यावहारिक व मानवीय दृष्टिकोण से विचार करें तो उनके वनवास का प्रथम संदेश मिलता है, राज्य-लिप्सा व अधिकारों का त्याग कर अनासक्ति के उच्च आदर्श की स्थापना करना।
दूसरा उद्देश्य
आज हम राष्ट्र से अधिक महत्व राज्य को दे रहे हैं। स्वयं को धर्म निरपेक्ष सिद्ध करने के लिए क्या-क्या ऊल-जलूल नहीं कह रहे हैं। धर्म और पंथ के अर्थों का घालमेल कर धर्म के अर्थ का अनर्थ कर रहे हैं। हम भूलते जा रहे हैं कि धर्म के बिना राजनीति कुछ भी नहीं है। हम इसी विचारधारा के दुष्परिणामों को भुगत रहे हैं किंतु सुधरना नहीं चाहते। श्रीराम के वनवास जाने का दूसरा कारण था राष्ट्र और धर्म की महत्ता को राज्य के ऊपर स्थापित करना।
तीसरा उद्देश्य
मानव जाति आज फिर वर्गों में विभाजित हो रही है। जाति के नाम पर समरसता की बात नहीं केवल वर्ग संघर्षों को बढ़ावा दिया जा रहा है। बदला लेने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
उस काल में भी यह स्थिति रही होगी तभी तो श्रीराम ने वनवास में वनवासी-जीवन को नगर जीवन से निरंतर मानने की प्रवृत्ति पर विराम लगाने के लिए-‘पिता दीन्ह मोहि कानन राजू’ कहते हुए वनवासी जीवन को गरिमा प्रदान की है।
चौथा उद्देश्य
भारत-भूमि सदा-सर्वदा से ही यज्ञ व तप की भूमि रही है। फिर भी समय-समय पर आसुरी शक्तियों ने इसे दूषित करने का प्रयास किया है। श्रीराम ने ‘निसिचर हीन करों मही, भुज उठाय पन कीन्ह’ की घोषणा कर भारतीय संस्कृति की सुरक्षा और संवर्धन के उपाय किए। संस्कृति के अधिष्ठान को ध्वस्त करने की दुष्प्रवृत्ति वाली आसुरी शक्तियों का कठोरतापूर्वक दमन किया। यह था उनके वनवास का चतुर्थ हेतु।
पांचवा उद्देश्य
उनके वनवास का पंचम हेतु था समाज की बिखरी शक्ति को एक सूत्र में बांध कर उनमें एक और एक ग्यारह कर दिखाना तथा उनमें आत्मविश्वास का संचार करना। तभी तो दुर्गम वन गिरि-प्रदेशों में अपनी संयुक्त शक्ति से अपरिचित वानर, ऋक्ष, गिद्ध इत्यादि वैदिक-संस्कृति की अनुषांगी जातियों को एक उद्देश्य प्रदान कर एकताबद्ध किया।
छठा उद्देश्य
वनवास का षष्ठ हेतु था तपस्वी ऋषि-मुनियों के गहन वनों में स्थित आश्रमों में जाकर उनके दर्शन कर विनम्रता से उपदेश ग्रहण करना। तप, त्याग जैसे उच्च जीवन मूल्यों और ज्ञान को सर्वोच्च प्रतिष्ठा प्रदान करना। इसी कारण वनवास की पूरी यात्रा ऋषियों के निर्देशानुसार ही रही है। राक्षस-प्रवृत्ति और आधुनिक काल की तरह उस काल में भी नारी जाति को सर्वाधिक पीड़ा देती थी। रावण जहां धन, हथियार व वाहन लूटता था वहीं सभी जातियों की स्त्रियों को भी लूटना अपना अधिकार समझता था और इस कुकृत्य को अपनी वीरता बताता था। श्रीराम के वन गमन का सप्तम हेतु था नारी-जाति के स मान को कलंकित करने वालों का दमन करने के लिए पराक्रम की पराकाष्ठा करना।
‘राम जन्म के हेतु अनेका’
श्रीराम के वनगमन के कारणों को सूचीबद्ध करना संभव भी नहीं है। अनेक सूचीबद्ध प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कारण और भी हैं। विद्वान अपनी-अपनी मति के अनुसार वर्णन करते हैं। संक्षेप में ‘राम जन्म के हेतु अनेका’ कह कर बात समाप्त करते हैं। (क्रमश:)
रामचौरा मंदिर, हाजीपुर (गंगा जी), वैशाली (बिहार)
रामायण वर्णन के अनुसार तीनों ने गंगा पार कर एक रात्रि विशाल नगरी में विश्राम किया था। यह स्थान वैशाली जिले में गंगा जी के किनारे स्थित है। विश्वास किया जाता है कि उन्होंने यहीं से गंगा पार की थी तथा यहां स्नान किया था। भोजपुरी में चौरा का अर्थ है उपवन। संभवत: यहां पहले उपवन था।
विश्वामित्र आश्रम, बिसोल, मधुबनी (बिहार)
वाल्मीकि रामायण के अनुसार जनकपुर पहुंच कर श्रीराम, सीता जी तथा लक्ष्मण जी ने जनकजी के उपवन में डेरा डाला था। वहां आज भी विश्वामित्र जी का आश्रम है। विश्वामित्र का ही अपभ्रंश बिसोल है।
बाग तड़ाग फुलहर गांव (जमुनी), मधुबनी (बिहार)
श्री रामचरित मानस के अनुसार यहां मां सुनयना ने सीता मां को गिरिजा पूजन के लिए भेजा था। तभी श्री राम व लक्ष्मण जी विश्वामित्र जी की पूजा के लिए पुष्प लेने यहां आए थे। पास ही बाग तड़ाग है। गांव का नाम फुलहर है।