गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर: ध्यान और सेवा से जीवन को बनाएं उत्सव

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 May, 2024 10:15 AM

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जीवन एक उत्सव है। जीवन में उत्सव मनाने का जितना भी अवसर मिले, उसके लिए कृतज्ञ रहना चाहिए। उत्सव अपने भीतर से होना चाहिए। यह हमारी आत्मा का स्वभाव है। उत्सव मनाने का कोई भी कारण एक अच्छा कारण है।

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Sri Sri Ravi Shankar: जीवन एक उत्सव है। जीवन में उत्सव मनाने का जितना भी अवसर मिले, उसके लिए कृतज्ञ रहना चाहिए। उत्सव अपने भीतर से होना चाहिए। यह हमारी आत्मा का स्वभाव है। उत्सव मनाने का कोई भी कारण एक अच्छा कारण है। किसी भी उत्सव को आध्यात्मिक होना ही है। कोई भी उत्सव बिना आध्यात्मिकता के संभव नहीं है। सेवा, ध्यान और मौन उत्सव को गहराई देते हैं।
सेवा के बिना आध्यात्मिक विकास संभव नहीं है।

हमारे पास जो कुछ भी है, वह दूसरों के साथ बांटना ही सेवा है। सेवा हमें दूसरों के जीवन से जोड़ती है। आध्यात्मिक विकास के लिए सेवा बहुत आवश्यक है। जो आनंद दूसरों की सहायता और सेवा में है, वह किसी और चीज में नहीं है। सेवा इसलिए नहीं की जाती कि आपको उसके बदले में कुछ मिलेगा। जो आप समाज की भलाई के लिए करते हैं, वही सेवा है। सेवा आपका स्वभाव है, आप सेवा किए बिना रह नहीं सकते।

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यदि किसी को आपकी आवश्यकता हो तो उनकी मदद करें। जब किसी को आपकी सेवा की आवश्यकता हो तब उनकी सेवा करनी चाहिए। मान लीजिए यदि कोई जमीन पर गिर गया है, उसको चोट लग गयी है तो उनको आपकी सेवा की आवश्यकता है, उस वक्त आप यह नहीं कह सकते कि 'इतनी चोट थोड़ी लगी होगी, मलहम-पट्टी क्या लगाना है?' यदि आप ऐसा सोचेंगे तो दूसरे लोग भी आपके लिए ऐसा ही सोचेंगे ।

एक बार एक बन्दर ने गुरु से कहा कि मैं ध्यान करना चाहता हूं, लेकिन मैं तो हमेशा छलांग लगाता रहता हूं तो ऐसे में ध्यान कैसे होगा। तो उसके गुरु ने उससे कहा कि यदि तुम ध्यान नहीं कर सकते तो, तुम सेवा करो। एक दिन वह बन्दर तालाब के किनारे गया और उसने देखा कि एक मछली पानी में उछल रही है। उसे लगा कि बेचारी मछली तो डूब जाएगी इसलिए बंदर ने मछली को पकड़कर पेड़ पर रख दिया तो यह सेवा नहीं है। जहां किसी को आपकी सेवा की आवश्यकता है, वहीं सेवा करें।

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जितना आप कर सकते हैं, वही आपके हिस्से की सेवा है
कोई भी आपसे यह नहीं कहता कि आप वह करिए जो आप नहीं कर सकते। जो हमसे हो सकता है, वही हमारे हिस्से की सेवा है। हमें महीने में या हफ्ते में कुछ घंटे सेवा में अवश्य लगना चाहिए। तो सेवा को अपने जीवन का एक अंग बनाएं। अपने शहर को स्वच्छ रखने की सेवा करें, लोगों को नशामुक्ति के लिए प्रेरित करने की सेवा करें, पेड़ लगाने की सेवा करें, दूसरों को ज्ञान में लाने की सेवा करें। जब आप दूसरों की सेवा में लगते हैं तो आपको अपनी समस्याएं अपने आप कम लगने लगती हैं और आप जल्दी ही समस्याओं से बाहर निकल पाते हैं।

मौन और ध्यान के बिना हर उत्सव अधूरा है
ध्यान और मौन से हर उत्सव में गहराई आती है। ध्यान कोई क्रिया नहीं है, यह ‘कुछ न करने’ की कला है! जब आपका मन शांत होता है, तभी आप ध्यान का अनुभव कर सकते हैं। जब हमारा मन किसी कार्य में व्यस्त रहता है तो वह थक जाता है। ध्यान आपको थकाता नहीं है, बल्कि यह आपको गहरा विश्राम देता है। ध्यान से मिलने वाला विश्राम लगभग गहरी नींद जैसा है लेकिन ध्यान नींद नहीं है । हमारी इच्छाएं गहरे ध्यान में बाधा बन सकती हैं। जब भी हमारे मन में कोई इच्छा बनी रहती है, तब उस वक्त ध्यान लगाना कठिन हो जाता है।

भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं, 'जब तक सभी तरह का संकल्प नहीं छूटता, तब तक मन शांत नहीं होता।'

अपने व्यक्तिगत दुखों से निकलने का मार्ग है संसार के दुख का भागीदार बन जाना और व्यक्तिगत आनंद को बढ़ाने का तारीक है संसार के आनंद में भागीदार हो जाना। जब हर व्यक्ति संसार को कुछ देने के भाव से आता है, तो सारा संसार एक दिव्य समाज हो जाता है।  हमें यह सोचने के बजाय कि हमारा क्या होगा, यह सोचना चाहिए कि हम दूसरों के लिए क्या कर सकते हैं ?

यदि आपको ध्यान में गहरे अनुभव नहीं हो रहे तो और अधिक सेवा करें। जब आप सेवा द्वारा किसी को विश्राम पहुंचाते हैं, तो आपको आशीर्वाद मिलता है । सेवा से आपको आशीर्वाद मिलता है, सेवा आपको गहरे ध्यान में जाने में सहायता करती है। ध्यान आपकी मुस्कुराहट वापस लाता है।

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