श्रील भक्तिवेदांत दामोदर महाराज जी विदेश में नौकरी छोड़ बन गए सन्यासी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Jun, 2024 10:49 AM

srila bhaktivedanta damodar maharaj ji

आज के बदलते दौर में जहां लोग आधुनिकता के नाम पर पश्चिमी सभ्यता की चमक-धमक, रहन-सहन को बड़ी तेजी से अपना रहे हैं। उसका दुःखद और चिन्तनीय पक्ष ये है कि वह अपनी मूल सभ्यता, संस्कृति और आध्यात्मिक शक्ति को पूर्णतया खोते जा रहे हैं। संस्कार विहीन समाज...

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आज के बदलते दौर में जहां लोग आधुनिकता के नाम पर पश्चिमी सभ्यता की चमक-धमक, रहन-सहन को बड़ी तेजी से अपना रहे हैं। उसका दुःखद और चिन्तनीय पक्ष ये है कि वह अपनी मूल सभ्यता, संस्कृति और आध्यात्मिक शक्ति को पूर्णतया खोते जा रहे हैं। संस्कार विहीन समाज बिना सींग और पूंछ के पशु के समान दिशाविहीन होकर बस भेड़चाल की तरह दौड़ता जा रहा है, एक-दूसरे के पीछे। स्वयं को ऊंचा और आधुनिक दिखाने की होड़ उसे नैतिक, आध्यात्मिक मूल्यों से शून्य तो कर ही रही है, डिप्रेशन, एंजाइटी जैसे रोगों की तरफ और शराब, ड्रग्स जैसे नशों की तरफ ले जा रही है। सभी खुशी-खुशी बिना वैचारिक मंथन के पतन के गर्त में गिर रहे हैं।

ऐसे में सामाजिक उत्थान हेतु वैचारिक क्रांति का उद्भव भी देखने को मिल रहा है विशेषता उच्च शिक्षा प्राप्त युवा वर्ग जैसे इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक वर्ग आध्यात्मिक जगत की गहराईयों में जाकर उस ऊर्जा को निकालने में जुट गया है।

ऐसे ही एक सन्यासी महात्मा हैं श्रील भक्तिवेदांत दामोदर महाराज जी। भगवान श्री कृष्णचैतन्य महाप्रभु जी द्वारा प्रदत्त नाम संकीर्तन को और सनातन ग्रन्थ जैसे श्रीमद्भागवत, श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीचैतन्यचरितामृत, श्रीरामचरितमानस के मूल सिद्धांत को प्रमाणिकता से जनमानस को देने का यह लक्ष्य स्वीकार कर चुके श्रील दामोदर महाराज, जगद्गुरु श्रील प्रभुपाद भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर द्वारा स्थापित श्रीगौड़ीय मठ से दीक्षित सन्यासी हैं। अपने प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण करते हुए, इंजीनियरिंग के दौरान इनके हृदय में ईश्वर के मूल स्वरूप और स्वभाव को देखने का अनुभव करने की जिज्ञासा हुई। विभिन्न संस्थानों में नौकरी करते हुए जब ये पोलैंड (विदेश) में नौकरी करने गए तो इनकी यह इच्छा इतनी प्रबल हो गयी की 2015 में यह नौकरी छोड़, घर त्याग कर श्री वृंदावन आ गए, श्री गोपालभट्ट गोस्वामी जी की गौड़ीय परंपरा में दीक्षा लेकर इन्होंने वैराग्यपूर्ण जीवन ही चुना और श्री गोवर्धन और श्री बरसाना में साधुओं के संग करते हुए, 2023 में सन्यास आश्रम में प्रवेश किया। दामोदर महाराज इंजीनियर तो थे ही, हिंदी साहित्य में मास्टर्स डिग्री भी प्राप्त की है।

दामोदर महाराज अपने अंतर्मन की बात कहते हैं- घर इसलिए नहीं छोड़ा की गुरु बनकर पूजा करवानी है, समाज में अध्यात्म की जो सेवा है, जो गुरुओं के आदेश हैं, वह करना है। गुरु तो एकमात्र श्रीकृष्ण हैं, हम सभी तो श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के दास हैं। बड़े-बड़े शैक्षिक संस्थानों में भगवत गीता पर सेमिनार ले चुके दामोदर महाराज कहते हैं, जब युवा ईश्वर से डरेगा नहीं, प्रेम करेगा। सन्तों को शक से नहीं, सम्मान से देखेगा और अपनी संस्कृति और मातृभूमि से प्रेम करने लगेगा, तब उनकी सेवा पूर्ण होगी।

शरणागति नामक उनकी संस्था भगवान श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु जी को समर्पित है, जिसका मुख्य उद्देश्य शैक्षिक संस्थानों और युवा वर्ग के विभिन्न आयामों पर जाकर अपने सनातन ग्रन्थों के मूल तत्व को बताना है। वह कहते हैं कि 6 गोस्वामियों ने समस्त आचार्य वर्ग ने और श्रील प्रभुपाद भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर जी ने जो त्याग हम सभी के लिए करके हमें शरणागति की यह दिव्य शक्ति दी है। हम सभी का दायित्व है कि हम उनके द्वारा प्रदत्त सेवा को पूर्ण रूप से निभाएं और अपने समाज में खो रही आध्यत्मिक ऊर्जा को उच्च शिखर पर स्थापित करें।

सन्यासी, संत और गुरु किसी विशेष परिवार से किसी विशेष समाज से नहीं आते। इसी समाज से उठकर समाज की सेवा का मार्ग जो चुनता है, मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को दूर करता हुआ एक दिन इसी समाज का सच्चा पथ प्रदर्शक बन जाता है।

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