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Srimad Bhagavad Gita: ‘इंद्रियों’ पर काबू रखें

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 May, 2023 11:16 AM

srimad bhagavad gita

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप: श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति। शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्रिषु जुह्वति॥4.26॥ साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता  स्वामी प्रभुपाद

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श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप: श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति। शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्रिषु जुह्वति॥4.26॥

साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता  स्वामी प्रभुपाद

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अनुवाद : इनमें से कुछ (विशुद्ध ब्रह्मचारी) श्रवणादि क्रियाओं तथा इंद्रियों को मन की नियंत्रण रूपी अग्रि में स्वाहा कर देते हैं, तो दूसरे लोग (नियमित गृहस्थ) इंद्रिय विषयों को इंद्रियों की अग्रि में स्वाहा कर देते हैं।

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तात्पर्य : मानव जीवन के चारों आश्रमों के सदस्य-ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यासी पूर्णयोगी बनने के निमित्त हैं। मानव जीवन पशुओं की भांति इंद्रियतृप्ति के लिए नहीं बना है, अतएव मानव जीवन के चारों आश्रम इस प्रकार व्यवस्थित हैं, कि मनुष्य आध्यात्मिक जीवन में पूर्णता प्राप्त कर  सके।

ब्रह्मचारी या शिष्यगण प्रामाणिक गुरु की देखरेख में इंद्रियतृप्ति से दूर रह कर मन को वश में करते हैं। कृष्णभावनामृत से संबंधित शब्दों को ही सुनते हैं। श्रवण ज्ञान का मूलाधार है, अत: शुद्ध ब्रह्मचारी सदैव हरेर्नामानुकीर्तनम-अर्थात भगवान के यश के कीर्तन तथा श्रवण में ही लगा रहता है। वह सांसारिक शब्द ध्वनियों से दूर रहता है और उसकी श्रवणेन्द्रिय हरे कृष्ण हरे कृष्ण की आध्यात्मिक ध्वनि को सुनने में ही लगी रहती है। इसी प्रकार से गृहस्थ भी, जिन्हें इंद्रियतृप्ति की सीमित छूट है, बड़े ही संयम से इन कार्यों को पूरा करते हैं।

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यौन जीवन, मादक द्रव्य सेवन और मांसाहार मानव समाज की सामान्य प्रकृतियां हैं, किन्तु संयमित गृहस्थ कभी भी इन कार्यों में अनियंत्रित रूप से प्रवृत्त नहीं होता। इसी उद्देश्य से प्रत्येक स य मानव समाज में धर्म-विवाह का प्रचलन है।

यह संयमित अनासक्त यौन जीवन भी एक प्रकार का यज्ञ है क्योंकि उच्चतर दिव्य जीवन के लिए संयमित गृहस्थ अपनी इंद्रियतृप्ति की प्रवृत्ति की आहूति कर देता है।

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