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Srimad Bhagavad Gita: रास्ते अलग, मंजिल एक

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Nov, 2023 08:37 AM

srimad bhagavad gita

अर्जुन पूछते हैं, ‘‘हे कृष्ण, आप कर्म-संन्यास की प्रशंसा करते हैं और फिर आप उनके निष्पादन की सलाह भी देते हैं। मुझे निश्चित रूप से बताएं कि

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Srimad Bhagavad Gita: अर्जुन पूछते हैं, ‘‘हे कृष्ण, आप कर्म-संन्यास की प्रशंसा करते हैं और फिर आप उनके निष्पादन की सलाह भी देते हैं। मुझे निश्चित रूप से बताएं कि कौन-सा बेहतर मार्ग है।’’ (5.1)

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पहले भी एक बार, अर्जुन सांख्य और कर्म (3.1) के रास्तों के बीच निश्चितता (3.2) की तलाश में थे। श्री कृष्ण, हालांकि, कर्म के त्याग की सलाह नहीं देते और इसकी बजाय, वह कहते हैं कि कर्म (3.4) के त्याग से सिद्धि प्राप्त नहीं होती। व्यक्ति को अपने गुणों (3.5) के अनुसार कर्म करने के लिए मजबूर किया जाता है।

वास्तव में, कर्म के बिना मानव शरीर का रख-रखाव भी संभव नहीं है (3.8)। भगवान श्री कृष्ण के बाद के उत्तर से स्पष्टता आती है कि कर्म-संन्यास सांख्य योग का ही एक हिस्सा है।

मूल रूप से कर्म के दो पहलू होते हैं। एक कर्ता है और दूसरा कर्मफल है। कर्तापन की भावना को छोड़ना, यह जानकर कि गुण ही वास्तविक कर्ता हैं और वर्णन योग्य है कि अर्जुन इसे कर्म-संन्यास के रूप में संदर्भित कर रहे हैं। वह बाद में कर्मफल की अपेक्षा किए बिना कर्म करने को कर्म के निष्पादन के रूप में संदर्भित करते है। संक्षेप में, अर्जुन पूछ रहे थे कि कर्तापन को छोड़ना है या कर्मफल को ?

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श्री कृष्ण उत्तर देते हैं कि कर्मों के त्याग और कर्मों के निष्पादन, दोनों से मोक्ष प्राप्त होता है, परन्तु इनमें से कर्मयोग कर्म त्याग से उत्तम है (5.2)। ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह उत्तर अर्जुन के लिए विशिष्ट है। वह कर्मफल के बारे में चिंतित है, जो कुरुक्षेत्र की लड़ाई में उसके शिक्षकों, परिवार और दोस्तों की मृत्यु है। मोटे तौर पर, यह हम में से बहुतों पर लागू होता है, जो अर्जुन की तरह मन उन्मुख हैं।

श्री कृष्ण स्पष्ट करते हैं कि केवल बच्चे, न कि बुद्धिमान, सांख्य और कर्म योग को अलग मानते हैं। जो व्यक्ति वास्तव में एक में स्थापित है, वह दोनों (5.4) का फल प्राप्त करता है। संक्षेप में, ये दो रास्ते अलग हो सकते हैं पर इनकी मंजिल एक ही है।
 

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