Srimad Bhagavad Gita: श्री कृष्ण कहते हैं, कमल के पत्ते से प्रेरणा लेकर संवारें जीवन

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Nov, 2023 08:24 AM

srimad bhagavad gita

जीवन सहित प्रत्येक भौतिक प्रणाली अलग-अलग ‘इनपुट’ लेती है और कुछ  ‘आऊटपुट’ उत्पन्न करती है। हम शब्दों और कर्मों जैसे अपने ‘आऊटपुट’ को लगातार

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Srimad Bhagavad Gita: जीवन सहित प्रत्येक भौतिक प्रणाली अलग-अलग ‘इनपुट’ लेती है और कुछ  ‘आऊटपुट’ उत्पन्न करती है। हम शब्दों और कर्मों जैसे अपने ‘आऊटपुट’ को लगातार मापते या आंकते हैं।

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हम दूसरों के कार्यों के साथ-साथ अपने आस-पास की विभिन्न स्थितियों को भी आंकते हैं। वास्तव में, विकासवादी प्रक्रिया में, हमारे लिए खतरों को पहचानना बहुत जरूरी था। हालांकि, समस्या कर्मों को सही या गलत निर्धारित करने के लिए मानकों के अभाव में है, जिसकी वजह से हम अक्सर अज्ञानता आधारित धारणाओं और विश्वास प्रणालियों पर निर्भर रहते हैं।

जब भी हम किसी ऐसे कार्य का सामना करते हैं, जो हमारी विश्वास प्रणाली के अनुरूप होता है, तो हम खुश और संतुष्ट महसूस करते हैं।

इस संबंध में, श्री कृष्ण कहते हैं, ‘‘जिसका मन अपने वश में है, जो जितेन्द्रिय एवं विशुद्ध अन्त:करण वाला है और संपूर्ण प्राणियों का आत्मरूप परमात्मा ही जिसकी आत्मा है, ऐसा कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी उसमें लिप्त नहीं होता (5.7)।’’ यह प्रभु की ओर से एक आश्वासन है कि हमारे कर्म कब कलंकित नहीं होंगे।

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श्री कृष्ण कहते हैं कि कर्म किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किए जाने पर कलंकित नहीं होते, जो शुद्ध है अर्थात द्वेष और इच्छाओं से मुक्त है (5.3) और जिसने अपने स्वयं को सभी प्राणियों के स्वयं के रूप में महसूस किया है। ध्यान देने योग्य बात है कि जब कोई अपने आप को सभी प्राणियों में देखता है तो कोई कारण नहीं कि वह कलंकित कार्य या अपराध करता है। इसके विपरीत हमारे और दूसरे के विभाजन की दृष्टि से किए जाने पर हमारे सभी कार्य दूषित हो जाते हैं।

जब स्थितियों को पहचानने की बात आती है, तो श्री कृष्ण कहते हैं कि जो पुरुष सब कर्मों को परमात्मा में अर्पण करके और आसक्ति को त्याग कर कर्म करता है, वह पाप से लिप्त नहीं होता जैसे जल में रहते हुए कमल का पत्ता उससे भीगता नहीं है। (5.10)

जब हमारे साथ-साथ दूसरों के कर्म भी भगवान को समर्पित होते हैं, तो विभाजन की कोई गुंजाइश नहीं होती। तब हम जिन परिस्थितियों का सामना करेंगे, वे नाटक व अभिनय प्रतीत होंगी, जहां हम अपनी भूमिका निभाते हैं। श्री कृष्ण इसकी तुलना कमल के पत्ते से करते हैं।

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