Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Jun, 2024 10:27 AM
![srimad bhagavad gita](https://img.punjabkesari.in/multimedia/914/0/0X0/0/static.punjabkesari.in/2024_6image_10_24_408441531gita111111111-ll.jpg)
एक द्विआयामी नक्शे का उपयोग त्रिआयामी क्षेत्र को दर्शाने के लिए किया जाता है। यह एक आसान, उपयोगी और सुविधाजनक तरीका है, लेकिन इसकी भी सीमाएं हैं।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Srimad Bhagavad Gita- एक द्विआयामी नक्शे का उपयोग त्रिआयामी क्षेत्र को दर्शाने के लिए किया जाता है। यह एक आसान, उपयोगी और सुविधाजनक तरीका है, लेकिन इसकी भी सीमाएं हैं। इसको समझने के लिए हमें क्षेत्र का पूरी तरह से अनुभव करने की जरूरत है। यही बात शब्दों के मामले में भी है, जो लोगों, स्थितियों, विचारों, भावनाओं और कार्यों के संदर्भ में एक बहुआयामी जीवन का वर्णन करने का प्रयास करते हैं, मगर शब्दों की भी कई सीमाएं होती हैं।
पहली सीमा यह है कि शब्द ध्रुवीय हैं। यदि एक को अच्छा बताया जाए तो हम दूसरे की बुरे के रूप में कल्पना कर लेते हैं। शायद ही कोई शब्द हो, जो ध्रुवों से परे की स्थिति का वर्णन कर सके।
दूसरा, एक ही शब्द अलग-अलग लोगों में उनके अनुभवों और परिस्थितियों के आधार पर अलग-अलग भावनाएं पैदा करता है। यही कारण है कि कुछ संस्कृतियां एकाधिक व्याख्याओं की इन सीमाओं को दूर करके संवाद करने के लिए मौन का उपयोग करती हैं।
तीसरा, हम शब्दों के शाब्दिक अर्थ पर रुक जाते हैं, जो सत्य के बारे में जानने जैसा है लेकिन सत्य नहीं है।
![PunjabKesari Srimad Bhagavad Gita](https://static.punjabkesari.in/multimedia/10_23_102746171gita21111111111.jpg)
ऐसा ही एक शब्द है ‘मैं’, जिसका प्रयोग श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों करते हैं। जहां अर्जुन का ‘मैं’ विभाजनों के साथ उसकी पहचान है, वहीं श्रीकृष्ण का ‘मैं’ प्रकट अस्तित्व के सभी विभाजनों को समाहित करने वाला एकत्व है।
शब्दों की सीमाओं के बारे में जागरूकता हमें गीता को समझने में मदद करेगी। निम्नलिखित श्लोक ऐसा ही एक उदाहरण है : श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘हे पार्थ, सुनो। अपने मन को पूरी तरह से मुझ पर केंद्रित करके, योग का अभ्यास करते हुए, मेरी शरण में आकर, तुम निस्संदेह मुझे पूर्ण रूप से जान लोगे’’ (7.1)।
श्रीकृष्ण के ‘मैं’ तक पहुंचने के लिए, हमें अपने आपको विलय करने की जरूरत है, जैसे एक नमक की गुड़िया स्वयं को सागर बनने के लिए घुल जाती है।
श्रीकृष्ण ने श्रणु (सुनो) शब्द का प्रयोग किया, जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। हमें यह सिखाया गया कि कैसे बोलना है, जो एक भाषा हो सकती है, या खुद को कैसे व्यक्त करना है लेकिन हमें शायद ही सुनना सिखाया गया हो।
![PunjabKesari Srimad Bhagavad Gita](https://static.punjabkesari.in/multimedia/10_23_100243902gita3.jpg)
जीवन को करीब से देखने से संकेत मिलता है कि परिस्थितियां हमें सुनना और समझना सिखाती हैं, जैसे अर्जुन के लिए कुरुक्षेत्र का युद्ध। निष्कर्ष निकलता है कि यह सीखने के लिए सुनना है।