Srimad Bhagavad Gita: आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत में इस तरह के विचार करते हैं हमें भ्रमित

Edited By Prachi Sharma,Updated: 15 Sep, 2024 07:00 AM

srimad bhagavad gita

यदि एक शब्द संपूर्ण गीता का वर्णन कर सकता है तो वह ‘दृष्टा’ (साक्षी) होगा, जो कई संदर्भों में इस्तेमाल होता है। इसकी समझ महत्वपूर्ण है क्योंकि हम में से अधिकांश लोग सोचते

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यदि एक शब्द संपूर्ण गीता का वर्णन कर सकता है तो वह ‘दृष्टा’ (साक्षी) होगा, जो कई संदर्भों में इस्तेमाल होता है। इसकी समझ महत्वपूर्ण है क्योंकि हम में से अधिकांश लोग सोचते हैं कि सब कुछ हम ही करते हैं और स्थितियों को भी हम ही नियंत्रित करते हैं।

कुरुक्षेत्र युद्ध के समय अर्जुन, जो लगभग साठ वर्ष का था ने एक अच्छा जीवन जिया था और सभी विलासिताओं का आनंद लिया था। एक योद्धा के रूप में उसने कई युद्धों को जीता था।

युद्ध के समय, उसने महसूस किया कि वह कर्त्ता है और उसे लगा कि अपने परिजनों की मृत्यु के लिए वही जिम्मेदार होगा। इस कारण युद्ध के मैदान में उसे निराशा हुई। सम्पूर्ण गीता में भगवान श्रीकृष्ण जी उसे यह बताने की कोशिश करते हैं कि वह कुत्ता नहीं है।

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स्वाभाविक प्रश्न है कि यदि मैं कर्त्ता नहीं हूं, तो मैं क्या हूं ?

 भगवान गीता में समझाते हैं कि अर्जुन ‘दृष्टा’ है, एक ‘साक्षी’ है।

60 वर्षों के अच्छे और बुरे जीवन के अनुभवों के कारण, अर्जुन को इस विचार को समझना मुश्किल लगता है कि वह केवल एक ‘साक्षी’ है, न कि ‘कर्त्ता’। केवल भगवान की श्रमसाध्य व्याख्या ही उसे इस तथ्य के बारे में आश्वस्त करती है। हालांकि, अधिकांश संस्कृतियां हमें बताती हैं कि हम सिर्फ एक ‘दृष्टा’ हैं, जो अपनी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत में इस विचार से भ्रमित होते हैं।

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दृष्टा (साक्षी) बुद्धि की स्थिति है, लेकिन भौतिक दुनिया में इसका आभास नहीं होता है। यह वह क्षमता है जो हमें अपने आसपास दिन-प्रतिदिन होने वाली घटनाओं से प्रभावित हुए बिना आंतरिक रूप से स्थिर रहने में मदद करती है।

यह हमें महसूस करने में मदद करती है कि हमें हमेशा किसी विशेष परिणाम (कर्म-फल) की इच्छा किए बिना कार्य करना चाहिए।   गीता आचरण -13

 

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