जीवन की समस्त समस्याओं का कारण सिर्फ एक, जानें क्या है?

Edited By Jyoti,Updated: 30 Sep, 2022 05:01 PM

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कहा जाता है हिंदू या सनातन धर्म से जितने भी ग्रंथ जुड़े हैं सब में न केवल देवी देवताओं से जुड़े रहस्यों के बारे में बताया गया है बल्कि इसमें मानव जीवन से संबंधित कई महत्वपूर्ण बातें बताई गई है। इन्हीं धर्म ग्रंथों व पुराणों में एक है श्रीमद्भागवत...

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
कहा जाता है हिंदू या सनातन धर्म से जितने भी ग्रंथ जुड़े हैं सब में न केवल देवी देवताओं से जुड़े रहस्यों के बारे में बताया गया है बल्कि इसमें मानव जीवन से संबंधित कई महत्वपूर्ण बातें बताई गई है। इन्हीं धर्म ग्रंथों व पुराणों में एक है श्रीमद्भागवत गीता जिसमें मानव जीवन से जुड़ी अनेकों बातों का वर्णन किया गया है। बताया जाता है इसमें श्री कृष्ण द्वारा दिए गए वो उपदेश हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि अगर वर्तमान समय में यानि कलियुग में मानव अपनाता है तो वो जीवन में सफल तो होता है बल्कि अपने जीवन को बेहतर तरीके से जी पाने में और समाज में मान-सम्मान पाने में कामयाब होता है। तो आपको बता दें आज हम आपको श्रीमद्भागवत गीता में दिए ही कुछ उपदेशों से रूबरू करवाने जा रहे हैं। जिसमें श्री कृष्ण ने अपने सखा अर्जुन को मानव के जीवन की समस्याओं का मुख्य कारण बताया है। तो आइए जानते हैं आखिर क्यों जीवन में आती है समस्याएं और आखिर क्या है इन समस्याओं से निजात पाई जा सकती है। 
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गीता में उल्लेख मिलता है कि श्री कृष्ण के अनुसार मानव जीवन का आधार है प्रेम। जिस किसी के जीवन में प्रेम है केवल वहीं व्यक्ति जीवन में शांति पा सकता है क्योंकि शांति प्रेम में ही निहित है। ऐसा कहा जाता है कि अगर जीवन में प्रेम नहीं हो तो वो व्यक्ति चाहे सब कुछ पा भी ले परंतु बावजूद इसके वह व्यक्ति संतुष्टि नहीं मिलती। 
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जिस व्यक्ति के मन में अधिक अंहकार, ईर्ष्या और द्वेष घर कर जाता है उसका पतन निश्चित हो जाता है। गीता में कहा गया है कि यह सारी वृत्तियां इंसान के साथ दीमक की तरह चिपक जाती है और धीरे-धीरे इंसान को अंदर से खोखला कर देती हैं।

कहा जाता है कि इंद्रियों से परे बुद्धि, बुद्धि से परे मन और मन से श्रेष्ठ चेतना यानि आत्मा है। गीता के अनुसार बिना आत्मा के कोई कर्म नहीं हो सकता। इसलिए आत्मा हर कर्म की भागीदार मानी जाती है। इसलिए कर्मों को उच्च रखना चाहिए।  

श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है मानव शरीर ही वह क्षेत्र है जहां युद्ध होता है। इसमें दो सेनाएं हैं, एक पांडव अर्थात पुण्यमयी और एक कौरव अर्थात पापी। अतः मनुष्य हमेशा दोनों के बीच में ही उलझा रहता है और कभी जीवन में शांति नहीं प्राप्त कर पाता।  
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