श्रीमद्भगवद्गीता: "काम" है मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु

Edited By Jyoti,Updated: 21 Aug, 2022 10:56 AM

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​​​​​​​बताया जाता है कि महाभारत युद्ध में श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिए थे, जिन्हें वर्तमान समय में श्री कृष्ण के मुख से सुनना तो शायद मुमकिन नहीं है परंतु इनके द्वारा दिए गए उपदेशों को न केवल आज भी जाना जा सकाता है बल्कि अपनाया

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बताया जाता है कि महाभारत युद्ध में श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिए थे, जिन्हें वर्तमान समय में श्री कृष्ण के मुख से सुनना तो शायद मुमकिन नहीं है परंतु इनके द्वारा दिए गए उपदेशों को न केवल आज भी जाना जा सकाता है बल्कि अपनाया भी जा सकता है। बता दें श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश वर्तमान समय में श्रीमद्भगवद्गीता में मौजूद है। जिनके बारे में हम आए दिन हम आपको अपनी वेबसाइट के जरिए बताते रहते हैं। तो आइए जानते हैं श्रीमद्भगवद्गीता का एक ऐसा है श्लोक-

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श्रीमद्भगवद्गीता: "काम" है मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

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श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भव:।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्॥३७॥

अनुवाद एवं तात्पर्य : श्री भगवान ने कहा : हे अर्जुन! इसका कारण रजोगुण के संपर्क से उत्पन्न काम है, जो बाद में क्रोध का रूप धारण करता है और जो इस संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है। जब जीवात्मा भौतिक सृष्टि के स पर्क में आता है तो उसका शाश्वत कृष्ण प्रेम रजोगुण की संगति से काम में परिणत हो जाता है। अथवा दूसरे शब्दों में, ईश्वर प्रेम का भाव काम में उसी तरह बदल जाता है जिस तरह इमली के संसर्ग से दूध, दही में बदल जाता है और जब काम की संतुष्टि नहीं होती तो वह क्रोध में परिणत हो जाता है, क्रोध मोह में और मोह इस संसार में निरंतर बना रहता है।

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अत: जीवात्मा का सबसे बड़ा शत्रु काम है और यह काम ही है जो विशुद्ध जीवात्मा को इस संसार में फंसे रहने के लिए प्रेरित करता है। क्रोध तमोगुण का प्राकट्य है। ये गुण अपने-आपको क्रोध तथा अन्य रूपों में प्रकट करते हैं। अत: यदि रहने तथा कार्य करने की विधियों द्वारा रजोगुण को तमोगुण में न गिरने देकर सतोगुण तक ऊपर उठाया जाए तो मनुष्य को क्रोध में पतित होने से आत्म आसक्ति के द्वारा बचाया जा सकता है।  (क्रमश:)

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