Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Mar, 2022 10:38 AM
![srinath ji](https://img.punjabkesari.in/multimedia/914/0/0X0/0/static.punjabkesari.in/2022_3image_10_11_392874860shrinathgmain-ll.jpg)
मुगल बादशाह औरंगजेब को भारत के वे सभी तीर्थ स्थान तथा मंदिर खटकने लगे, जहां हिंदुओं का पूरे भारतवर्ष से आना-जाना व जमावड़ा होता था। लोग हिंदू धर्म-संस्कृति, परम्परा से ऊर्जावान होकर
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Shrinathji Temple Nathdwara: मुगल बादशाह औरंगजेब को भारत के वे सभी तीर्थ स्थान तथा मंदिर खटकने लगे, जहां हिंदुओं का पूरे भारतवर्ष से आना-जाना व जमावड़ा होता था। लोग हिंदू धर्म-संस्कृति, परम्परा से ऊर्जावान होकर अपने-अपने प्रांतों को वापस लौटते थे। सम्पूर्ण ब्रजभूमि-ब्रजक्षेत्र औरंगजेब को फूटी आंख भी नहीं सुहाता था। अत: आलमगीरी फरमान जारी हो गया कि वहां के ऐसे सभी मंदिरों तथा श्री विग्रहों को ध्वस्त कर नष्ट कर दिया जाए, जो समस्त देश के श्रद्धा व आस्था के केंद्र बने हुए हैं और उनके स्थान पर मस्जिदें तामीर कर दी जाएं। ऐसी स्थिति में ब्रजमंडल के देवविग्रहों को गुप्त रीति से लेकर उनके भक्त जहां ठौर-ठिकाना मिला, वहां जा बसे।
सम्पूर्ण ब्रजक्षेत्र प्राचीनकाल से अब तक वैष्णवों का गढ़ रहा है। श्री कृष्ण जन्मस्थान जिसका निर्माण ओरछा नरेश महाराजा वीरसिंह जू देव बुन्देल ने तत्कालीन समय में 33 लाख रुपए लगा कर किया था जबकि मुगल दस्तावेज ताजमहल पर कुल व्यय 20 लाख रुपए ही बताते हैं तो उस मंदिर की भव्यता का अनुमान इससे एवं इससे भी अधिक सल्तनत कालीन मुस्लिम लेखकों के उन लेखों से होता है जिनमें वे लिखते हैं-
![PunjabKesari Shrinathji Temple](https://static.punjabkesari.in/multimedia/10_13_170077076shrinath-ji-7.jpg)
‘‘कृष्ण जन्मभूमि को देखकर यही प्रतीत होता था कि इसे आदमियों ने नहीं, बल्कि आसमान से उतर कर फरिश्तों ने ही बनाया होगा।’’
औरंगजेब की कुटिल दृष्टि का प्रधान लक्ष्य श्री गिरिराज धरण का विग्रह बना हुआ था क्योंकि उनके प्राकट्य की आलौकिक लीला का सम्मान जन-जन के हृदय में स्थान बना चुका था। भयंकर रक्तपात की आशंका देखकर गुसाईं विट्ठलदास जी के ज्येष्ठ पुत्र स्व. गिरिधर जी के पश्चात उनके स्थान पर प्रतिष्ठित गुसाईं दामोदर जी ने शरद पूर्णिमा उत्सव पर जुटने वाली जनता की सुरक्षा के लिए इसी पुण्य पर्व का सायंकाल चुना।
![PunjabKesari Shrinathji Temple](https://static.punjabkesari.in/multimedia/10_12_203032675shrinath-ji-1.jpg)
वे श्री नाथ जी का विग्रह लेकर मुगल बादशाह की ठीक नाक के नीचे आगरा जा पहुंचे। 16 दिन वहां छिपकर रहे। फिर बूंदी-कोटा-पुष्कर, कृष्णगढ़, जोधपुर होते हुए, कहीं सुरक्षा का आश्वासन न मिलने के कारण मेवाड़ पहुंचे।
![PunjabKesari Shrinathji Temple](https://static.punjabkesari.in/multimedia/10_13_087579638shrinath-ji-6.jpg)
महाराणा राजसिंह सिसौदिया ने विश्वास ही नहीं दिलाया, बल्कि संकल्प सहित बोले कि जब तक एक भी सिसौदिया क्षत्रिय के धड़़ पर शीश है, तब तक श्री नाथ जी की परछाईं भी कोई नहीं छू सकता।
![PunjabKesari Shrinathji Temple](https://static.punjabkesari.in/multimedia/10_12_299904865shrinath-ji-2.jpg)
बनारस नदी के तट पर सिहाड़ नामक ग्रास श्री नाथ द्वारा बन गया। जिन श्री नाथ जी को कई-कई दिनों तक भोग भी नहीं लग पाया था, उनको दिन में कई-कई बार भोग लगने लगे। 56 भोग पूजा होने लगी।
![PunjabKesari Shrinathji Temple](https://static.punjabkesari.in/multimedia/10_12_477399628shrinath-ji-4.jpg)
चांदी-सोने की चक्कियों में केसर पिसने लगी। घी-तेल के कुएं भर गए। शाक, अन्न, फूलों के लिए भंडार छोटे पड़ गए। श्री नाथ द्वारा अनाथों के लिए मात्र श्री नाथ जी का द्वार नहीं बल्कि इस द्वार पर जिसने मस्तक झुका दिया उसका द्वार श्री नाथ जी के भवन का द्वार बन गया।
![PunjabKesari Shrinathji Temple](https://static.punjabkesari.in/multimedia/10_13_266011140shrinath-ji-8.jpg)