Edited By Prachi Sharma,Updated: 04 Aug, 2024 09:56 AM
मेरठ कैंट क्षेत्र में ‘सेंट जॉन द बैपटिस्ट’ या ‘सेंट जोन्स चर्च’ इस बार अपनी 200वीं वर्षगांठ मनाएगा। चर्च में प्रवेश करने पर इंगलैंड के बड़े
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St. John's Church Meerut: मेरठ कैंट क्षेत्र में ‘सेंट जॉन द बैपटिस्ट’ या ‘सेंट जोन्स चर्च’ इस बार अपनी 200वीं वर्षगांठ मनाएगा। चर्च में प्रवेश करने पर इंगलैंड के बड़े चर्च में होने का अहसास होता है। ब्रिटिश सेना के पादरी रेवरेंड हैनरी फिशर ने ब्रिटिश अफसरों व सिपाहियों के लिए इस चर्च का निर्माण 1819 में शुरू कराया था, जो 1824 बनकर तैयार हुआ। उत्तर भारत के इस सबसे पुराने चर्च में करीब दस हजार लोग एक साथ प्रेयर कर सकते हैं।
चर्च परिसर में एक प्राचीन सिमट्री है, जो ऐतिहासिक है, क्योंकि 10 मई, 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मारे गए ब्रिटिश सैन्य अफसरों व सिपाहियों का यहीं पर अंतिम संस्कार किया गया था। आज भी विदेशी अपने पूर्वजों की याद में यहां आते और उनके लिए प्रार्थना करते हैं।
ऐसा है सेंट जोन्स चर्च
यह उत्तर भारत का सबसे पुराना चर्च है। इसके निर्माण में संगमरमर, पीतल, लकड़ी और कांच का इस्तेमाल किया गया है। यह पूरी तरह पैरिस चर्च वास्तुकला शैली में बनाया गया है। परिसर में सुंदर लॉन, हरियाली और शांत वातावरण के कारण यह देश के अन्य चर्च से अलग स्थान रखता है। ईस्टर, क्रिसमस, नए साल पर यहां विशेष प्रार्थना सभाएं होती हैं। क्रिसमस के मौके पर तो यहां अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें मेरठ ही नहीं आसपास के इलाकों से भी लोग शामिल होते हैं।
ऐतिहासिक सिमट्री
सेंट जोन्स सिमट्री 23 एकड़ में फैली है। इसमें कितनी कब्र हैं, इसकी कोई गिनती नहीं है। सबसे पुरानी कब्र 1810 की है, जबकि अन्य 1857 के गदर में मारे गए ब्रिटिश अफसरों की कब्रें हैं। अमरीका में जन्मे बोस्टन के लेखक डेविड ओचटर्लोनी की 18 जुलाई, 1825 को यहां प्रवास के दौरान मृत्यु हो गई थी। उनका भी यहां ईसाई धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार किया गया। पहले यहां किसी को भी आने-जाने की छूट थी, लेकिन कब्जे की शिकायतें आने लगीं तो लोगों के सीधे प्रवेश पर रोक लगा दी गई। सिमट्री पर तैनात रोबिन सिंह का कहना है कि बिना परमिशन अंदर जाना प्रतिबंधित कर दिया गया है। यहां कितनी कब्रें हैं, उन्हें भी नहीं पता।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अहम तथ्य
दरअसल, 10 मई, 1857 को रविवार था। इससे एक दिन पहले शनिवार को उन 85 भारतीय सैनिकों का कोर्ट मार्शल किया गया था, जिन्होंने चर्बीयुक्त कारतूस चलाने से मना कर दिया था क्योंकि उसे मुंह से खोलना पड़ता था। शनिवार को इन 85 भारतीय सैनिकों को परेड ग्राऊंड से विक्टोरिया पार्क स्थित जेल तक इनके कपड़े उतारकर बड़ी बेइज्जती से पूरे शहर में घुमाकर जेल में बंद किया गया।
ब्रिटिश अफसरों के आदेश पर यह सब इसलिए जानबूझ कर किया गया था, ताकि शहर में कोई भी ब्रिटिश राज के खिलाफ बोलने की हिमाकत न कर सके।
भारतीय सैनिकों के साथ ब्रिटिश अफसरों के इस व्यवहार से लोगों में शाम से ही विद्रोह पैदा हो गया। लोगों ने अलग-अलग बैठकें कीं। अगले दिन रविवार को ब्रिटिश अफसर व कर्मचारी छुट्टी के दिन अपने-अपने कामों में व्यस्त थे। कुछ सेंट जोन्स चर्च गए थे। इस बीच आक्रोशित लोगों ने इनके बंगलों पर हमला कर दिया। इनमें कर्नल जॉन फिनिश सबसे पहले शिकार हुए। जब अन्य ब्रिटिश अफसरों को इसका पता चला तो हड़कम्प मच गया और विद्रोह को दबाने के फेर में वे इस गदर का शिकार हुए। इन ब्रिटिश अफसरों व कर्मचारियों का ईसाई धर्म के अनुसार सेंट जोन्स सिमट्री में अंतिम संस्कार किया गया। तब से विदेशी अपने पूर्वजों की कब्र पर प्रार्थना करने आते हैं।