Edited By Jyoti,Updated: 05 Jun, 2022 11:37 AM
हिंदू धर्म में पूजा-अर्चना के लिए मंदिर से बेहतर स्थान कोई नहीं माना जाता। हमारे देश में न जाने कितने मंदिर हैं, जहां अनेक प्रकार से पूजा अर्चना होती है। तो वहीं ये तमाम मंदिर किसी न किसी कारणवश देश
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हिंदू धर्म में पूजा-अर्चना के लिए मंदिर से बेहतर स्थान कोई नहीं माना जाता। हमारे देश में न जाने कितने मंदिर हैं, जहां अनेक प्रकार से पूजा अर्चना होती है। तो वहीं ये तमाम मंदिर किसी न किसी कारणवश देश भर में प्रसिद्धि हासिल किए हुए हैं। इन्हीं में से एक मंदिर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। दरअसल हम बात कर रहे हैं एक अनोखे शिव मंदिर की। जिसके बारे में ये कहा जा सकता है कि कभी-कभी केवल भक्ति ही हमें मंदिर तक नहीं ले जाती है, बल्कि मंदिर से जुड़ी कुछ अनोखी घटनाएं हमें अपनी ओर खींचती हैं। इसी तरह का है शिव जी का ये मंदिर जो हर दिन एक दिलचस्प दृश्य से गुजरता है।
बता दें हम बात कर रहे हैं कि गुजरात में स्तंभेश्वर महादेव मंदिर की, जो राज्य में घूमने के लिए अविश्वसनीय स्थानों में से एक कहलाता है। इस मंदिर को शिव जी का अनोखा धार्मिक स्थल कहते हैं जिसका कारण है इस मंदिर का रोजाना जलमग्न होना और फिर से प्रकट होना। जी हां, आपकी जानकारी के लिए बता दें स्तंभेश्वर महादेव मंदिर को भारत में विलुप्त होने वाले एकमात्र शिव मंदिर के रूप में जाना जाता है। प्रकृति के इस असाधारण दृश्य को देखने के लिए इस जगह की यात्रा करने के लिए लोग न केवल देश से अपितु विदेशों से भी आते हैं। आगे बताते चलें दरअसल स्तंभेश्वर महादेव अरब सागर के तट और गुजरात में खंभात की खाड़ी के कावी कंबोई शहर में स्थित है। प्रत्येक दिन, ये शिव मंदिर समुद्र की लहरों के बढ़ने के समय कुछ घंटों के लिए पानी में डूब जाता है और लहरों के स्तर नीचे आने पर फिर से प्रकट होता है।
स्तंभेश्वर नामक का ये मंदिर दिन में दो बार सुबह और शाम को पल भर के लिए ओझल हो जाता है और कुछ देर बाद उसी जगह पर वापस भी आ जाता है। ऐसा पानी की लहरों के दबाव के उठने के कारण होता है। इसके चलते लोग मंदिर के स्थित शिवलिंग के दर्शन केवल तब हो सकते हैं, जब समुद्र में ज्वार कम होता है। ज्वार के समय शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है और मंदिर तक कोई नहीं पहुंच सकता। बताया जा रहा है यह प्रक्रिया सदियों से चली आ रही है।
कैसे हुई इस मंदिर की स्थापना
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं भगवान कार्तिकेय ने की थी। एक अन्य कथा के अनुसार भगवान कार्तिकेय (शिव के पुत्र) राक्षस ताड़कासुर को मारने के बाद स्वयं को अपराधी मानते हैं तब भगवान विष्णु ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहते हैं कि तुम ने एक राक्षस का वध किया, इसलिए तुम्हें निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन भगवान कार्तिकेय शिव के परम भक्त को मारने के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। जिसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें शिवलिंग स्थापित करके उसकी पूजा व क्षमा प्रार्थना करने के लिए कहा। अतः ऐसी धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयं शिव शंकर के पुत्र कार्तिकेय जी ने अपने हाथों से स्थापित किया, जिस कारण इसकी अन्य मान्यता है।