Edited By Jyoti,Updated: 08 Feb, 2020 11:01 AM
वाचस्पति मिश्र की शादी छोटी उम्र में ही हो गई थी। जब वह पढ़ाई पूरी करके घर वापस लौटे तो उन्होंने अपनी मां से वेदांत दर्शन पर टीका लिखने की आज्ञा मांगी।
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वाचस्पति मिश्र की शादी छोटी उम्र में ही हो गई थी। जब वह पढ़ाई पूरी करके घर वापस लौटे तो उन्होंने अपनी मां से वेदांत दर्शन पर टीका लिखने की आज्ञा मांगी। जब वह टीका लिखने लगे तो उन्होंने अपनी मां से कहा कि जब तक उनका टीका पूरा न हो जाए, तब तक उनका ध्यान भंग न किया जाए। उनकी मां काफी बूढ़ी हो चुकी थीं, तो उन्होंने मदद के लिए अपनी बहू भामती को बुला लिया। आते ही भामती ने सारी जिम्मेदारी उठा ली। कुछ दिन बाद माता जी का देहावसान हो गया। भामती पति की सेवा में लीन रही।
वाचस्पति मिश्र साहित्य साधना में ऐसे लीन रहे कि उन्हें पता ही न चला कि उनकी सेवा कौन कर रहा है? धीमे-धीमे 30 साल बीत गए। एक दिन शाम को दीपक का तेल खत्म हो गया और वाचस्पति मिश्र का ग्रंथ भी पूरा हो गया। दीपक के बुझने से भामती को बहुत दुख हुआ। उसने सोचा कि वाचस्पति को लिखने में नाहक बाधा पड़ी। वह काम छोड़कर जल्दी-जल्दी दीपक में तेल डालने लगी। अपने रचना कार्य से अभी-अभी मुक्त हुए साहित्यकार ने किताबों से सिर उठाया तो सामने खड़ी नारी को देखा, लेकिन पहचान नहीं पाए। भामती से उन्होंने पूछा, ''हे देवी, आप कौन हैं?”
नजरें झुका कर सामने खड़ी भामती ने कहा, ''हे देव, मैं आपकी पत्नी हूं।”
सुनकर वाचस्पति मिश्र जैसे गहरी नींद से जागे और पूछा, ''देवी, तुम्हारा नाम क्या है?”
देवी ने उसी तरह सकुचाते हुए कहा, ''मेरा नाम भामती है।”
वाचस्पति मिश्र उसके त्याग और सेवा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत कलम उठाई और 30 वर्षों तक कठिन मेहनत करके जिस अप्रतिम ग्रंथ की रचना की थी, उस पर लिख दिया-'भामती’। दुनिया में वाचस्पति के तप की कहानी फैली तो साथ ही भामती के त्याग की कीर्ति भी फैली।