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Story of Chanakya: आचार्य चाणक्य की ईमानदारी को देख चोर ने बदला अपना रास्ता

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Oct, 2023 09:48 AM

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आचार्य चाणक्य की कुटिया पर एक महात्मा पधारे। भोजन का समय था। आचार्य ने अतिथि से अनुरोध किया कि वह उसके साथ भोजन करें। महात्मा ने अनुरोध

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Acharya Chanakya ki Kahani: आचार्य चाणक्य की कुटिया पर एक महात्मा पधारे। भोजन का समय था। आचार्य ने अतिथि से अनुरोध किया कि वह उसके साथ भोजन करें। महात्मा ने अनुरोध सहर्ष स्वीकार कर लिया। कुटिया के एक कक्ष में रसोई थी। वहां दो महिलाएं खाना बनाने में जुटी हुई थीं। उन्होंने शीघ्रता से भोजन परोसा। भोजन में थोड़े से चावल, कढ़ी और एक सब्जी थी।

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महात्मा को बड़ी हैरानी हुई। वह सोचने लगे, मौर्य साम्राज्य के प्रधानमंत्री के यहां ऐसा भोजन! आखिर वह बोल उठे, “आप इस बड़े साम्राज्य के निर्माता और शक्तिशाली प्रधानमंत्री हैं, फिर भी यह सादा जीवन क्यों जीते हैं?”

आचार्य चाणक्य ने कहा,“ मैं प्रधानंत्री बना हूं जनता की सेवा के लिए। इसका अर्थ यह नहीं कि राज्य की संपत्ति का मैं उपयोग करूं। महात्मा पूछ बैठे, “आप अपनी आजीविका के लिए भी कुछ करते हैं?”

चाणक्य ने उत्तर दिया, “हां, मैं पुस्तकें लिखता हूं। मैं प्रतिदिन राज्य के लिए 8 घंटे काम करता हूं। मेरी कोशिश है कि राज्य में कोई दुखी न हो।”

महात्मा ने कहा, “यहां तो कोई दुखी नहीं, पर पास के गांव वाले बड़े दुखी हैं क्योंकि कोई चोर उनके कंबल चुरा कर ले जाता है।”

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आचार्य चाणक्य ने उन दुखी गांव वालों के लिए राजभंडार से कंबल मंगवाए। रात को वे कंबल उनकी कुटिया में ही रखे हुए थे। चोर उन कंबलों को भी चुराने के लिए रात को चाणक्य की कुटिया में घुसा। उसने देखा कि आचार्य चाणक्य पुराना कंबल ओढ़े सो रहे थे। नए कंबलों का ढेर अलग रखा था। प्रधानमंत्री की ईमानदारी देखकर चोर अपने कृत्य पर पछतावा करने लगा। उस घटना के बाद चोर ने हमेशा के लिए चोरी छोड़ दी। 

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