Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Mar, 2023 11:18 AM
देवराज इंद्र एक बार गुरु बृहस्पति के साथ भगवान शिव का दर्शन करने कैलाश गए। महादेव ने दोनों की परीक्षा लेनी चाहिए इसलिए रूप बदल कर अवधूत बन गए। उनका शरीर जलती हुई अग्नि के समान धधक
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Story of demon Jalandhar- देवराज इंद्र एक बार गुरु बृहस्पति के साथ भगवान शिव का दर्शन करने कैलाश गए। महादेव ने दोनों की परीक्षा लेनी चाहिए इसलिए रूप बदल कर अवधूत बन गए। उनका शरीर जलती हुई अग्नि के समान धधक रहा था और अत्यंत भयंकर नजर आते थे। अवधूत दोनों के रास्ते में खड़े हो गए। इंद्र ने एक विचित्र पुरुष को रास्ते में खड़ा देखा तो चौंके।
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इंद्र को देवराज होने का गर्व घेरने लगा। उन्होंने उस भयंकर पुरुष से पूछा तुम कौन हो? भगवान शिव अभी कैलाश पर विराज रहे हैं या कहीं भ्रमण कर रहे हैं? मैं उनके दर्शनों को आया हूं। देवराज इंद्र ने कई प्रश्न किए लेकिन वह योगियों के समान मौन ही रहे। इंद्र को लगा कि एक साधारण प्राणी उनका अपमान कर रहा है। उनके मन में देवराज होने का अहंकार उपजा जो क्रोध में बदल गया।
इंद्र ने कहा,‘‘मेरे बार-बार अनुरोध करने पर भी तू कुछ न बोल कर मेरा अपमान कर रहा है। मैं तुझे अभी दंड देता हूं।’’
ऐसा कहकर इंद्र ने वज्र उठा लिया जिसे भगवान शिव ने उसी समय स्तंभित यानी जड़ कर दिया। इंद्र की बांह अकड़ गई। भगवान अवधूत क्रोध से लाल हो गए। बृहस्पति उनके चेहरे पर आई क्रोध की ज्वाला को देखकर समझ गए कि ऐसा प्रचंड स्वरूप महादेव के अतिरिक्त किसी का नहीं हो सकता।
बृहस्पति शिवस्तुति गाने लगे। उन्होंने इंद्र को भी महादेव के चरणों में लिटा दिया और बोले,‘‘प्रभु इंद्र आपके चरणों में पड़े हैं। आपके शरणागत हैं। आपके ललाट से प्रकट अग्नि इन्हें जलाने को बढ़ रही है। हम शरणागतों की रक्षा करें। आप इस तेज को कहीं और स्थान दे दीजिए ताकि इंद्र के प्राणों की रक्षा हो।’’
भगावन रुद्र बोले,‘‘बृहस्पति मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं। इंद्र को जीवनदान देने के कारण तुम्हारा एक नाम ‘जीव’ भी होगा। मेरे तीसरे नेत्र से प्रकट इस अग्रि का ताप देवता सहन नहीं कर सकते। इसलिए मैं इसे बहुत दूर छोड़ूंगा।’’
महादेव ने उस तेज को हाथ में धारण कर समुद्र में फैंक दिया। वहां फैंके जाते ही भगवान शिव का वह तेज तत्काल एक बालक के रूप में बदल गया। सिंधु से उद्भव होने के कारण उसका नाम सिंधुपुत्र जलंधर प्रसिद्ध हुआ।