Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Mar, 2021 08:43 AM
गौतम बुद्ध ने 21 वर्ष की आयु में दुखों से मुक्ति प्राप्त होने का उपाय ढूंढने के लिए अपने परिवार और गृहस्थ जीवन को छोड़ दिया। निरंतर चिंतन मनन के बाद 35 वर्ष की आयु में उन्होंने इसका रास्ता भी खोज लिया।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Story Of Gautama Buddha- गौतम बुद्ध ने 21 वर्ष की आयु में दुखों से मुक्ति प्राप्त होने का उपाय ढूंढने के लिए अपने परिवार और गृहस्थ जीवन को छोड़ दिया। निरंतर चिंतन मनन के बाद 35 वर्ष की आयु में उन्होंने इसका रास्ता भी खोज लिया। 45 वर्ष लगातार उन्होंने अपने विचारों का प्रचार एवं प्रसार किया।
जब उनका अंत समय आया, वह एक वृक्ष के नीचे लेट गए और मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगे। उस समय उनका केवल एक ही शिष्य उनके पास था। उसका नाम आनंद था। आनंद ही लम्बे समय से बुद्ध की सेवा कर रहा था। आनंद ने सोचा कि बुद्ध का अंत समय निकट है। अगर यह बात पास के गांव वालों में रहने वाले बुद्ध के शिष्यों को न बताई जाए तो वे लोग नाराज होंगे।
आनंद के यह बताने पर लोग बुद्ध का दर्शन करने उस वृक्ष के पास पहुंचने लगे। आसपास के इलाकों में इस बात की चर्चा फैल गई। एक व्यक्ति अपनी जिज्ञासा के समाधान के लिए काफी उत्सुक था। भोला भाला ग्रामीण था और दुनियादारी को ढंग से नहीं जानता था फिर भी उसके मन में एक जिज्ञासा थी जिसे लेकर वह परेशान था।
बुद्ध से उसने जीते जी मुक्ति पाने का मार्ग बताने की प्रार्थना की। बुद्ध ने कहा, ‘‘जीते जी जन्म-मरण से मुक्ति प्राप्त करना चाहते हो तो जीवन में तीन बातों का ध्यान रखो। इन बातों पर अमल भी करो।’’ सब लोग ध्यान से सुनने लगे।
बुद्ध ने कहा, ‘‘पहली बात पापों से जहां तक संभव हो बचो। दूसरी बात जीवन में जितने भी पुण्य कर्म कर सकते हो करो। तीसरी बात, अपना मन-चित्त निर्मल रखो।’’
यह शब्द कहते ही बुद्ध ने अपने प्राण त्याग दिए।’’
बुद्ध की इन तीन शिक्षाओं को अपना कर ग्रामीणों ने जीते जी मुक्ति का मार्ग पाया। ये तीन शिक्षाएं मानवता के लिए अमूल्य धरोहर हैं। दिखने में शायद ये तीनों बातें बहुत छोटी नजर आती हैं किन्तु वास्तव में यदि हम इन पर अमल करें तो निश्चय ही जीवन के उच्च लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।