Story of Jada Bharata- जड़भरत के उपदेशों से खुद को करें निहाल

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Jul, 2024 08:13 AM

story of jada bharata

जड़भरत तत्वज्ञानी के पिता आगिरस गोत्र के वेदपाठी ब्राह्मण थे। भगवान के अनुग्रह से जड़भरत को पूर्व जन्म की स्मृति प्राप्त थी। अत: सांसारिक मोह जाल में फंसने के भय से वह बचपन से ही सांसारिक

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Story of Jada Bharata- जड़भरत तत्वज्ञानी के पिता आगिरस गोत्र के वेदपाठी ब्राह्मण थे। भगवान के अनुग्रह से जड़भरत को पूर्व जन्म की स्मृति प्राप्त थी। अत: सांसारिक मोह जाल में फंसने के भय से वह बचपन से ही सांसारिक संबंधों से उदासीन रहा करते थे। उपनयन के योग्य होने पर पिता ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार करवाया और उन्हें शिक्षा देने लगे। आचार्य ने उन्हें त्रिपदा गायत्री का अभ्यास कराया, परंतु वह गायत्री मंत्र का उच्चारण भी न कर सके। जड़भरत के पिता उन्हें विद्वान देखने की आशा में इस असार संसार से विदा हो गए। 

PunjabKesari Story of Jada Bharata

पिता के परलोकवास के बाद इनके सौतेले भाइयों ने इन्हें जड़बुद्धि समझ कर पढ़ाने का आग्रह छोड़ दिया। लोग जड़भरत जी को जो भी काम करने को कहते उसे वह तुरंत कर देते। कभी बेगार में, कभी मजदूरी पर, किसी समय भिक्षा मांग कर जो भी अन्न इन्हें मिल जाता उसी से वह अपना निर्वाह कर लेते थे। इन्हें यह बोध हो गया था कि स्वयं अनुभव स्वरूप और आनंद स्वरूप आत्मा मैं ही हूं। 

मान-अपमान, जय-पराजय, सुख-दुख आदि द्वंद्वों से मेरा कोई संबंध नहीं है। एक दिन लुटेरों के किसी सरदार ने संतान की कामना से नरबलि देने का संकल्प किया। इस काम के लिए उसके साथियों ने जिस मनुष्य की व्यवस्था की थी, वह मृत्यु भय से उनके चंगुल से छूट कर भाग गया। अचानक उनकी दृष्टि जड़भरत जी पर पड़ी और वे उन्हें पकड़ कर बलिस्थल पर ले गए। जैसे ही सरदार ने उन्हें मारने के लिए अभिमंत्रित खड्ग उठाया, वैसे ही देवी ने मूर्ति से प्रकट होकर उन सभी दुष्टों को मार डाला और जड़भरत की रक्षा की।

PunjabKesari Story of Jada Bharata

एक दिन की बात है कि सौवीर नरेश राजा रहूगण तत्त्वज्ञान प्राप्त करने की इच्छा से कपिल मुनि के आश्रम पर जा रहे थे। इक्षुमती नदी के तट पर पहुंचने पर उनकी पालकी का एक कहार बीमार पड़ गया। दैवयोग से वहीं महात्मा जड़भरत भ्रमण कर रहे थे। कहारों ने उन्हें हृष्ट-पुष्ट शरीर वाला देख कर पालकी ढोने के लिए उपयुक्त समझा। अत: अपने साथ पालकी ढोने के लिए उनको जबरन लगा लिया। 

जीव हिंसा के भय से जड़भरत जी रास्ता देखते हुए धीरे-धीरे चलते थे। इसलिए इनकी गति जब पालकी उठाने वाले कहारों के साथ एक जैसी नहीं हुई तो पालकी टेढ़ी होने लगी। इस पर राजा ने पालकी के कहारों को डांटते हुए ठीक से चलने के लिए कहा। कहारों ने उत्तर दिया, ‘‘हम लोग तो ठीक से चल रहे हैं। यह नया आदमी ठीक से नहीं चल रहा है। इसीलिए पालकी टेढ़ी हो जा रही है।’’

राजा रहूगण जड़भरत के वास्तविक स्वरूप से अनभिज्ञ होने के कारण उन्हें बुरा-भला कहने लगे। जड़भरत जी राजा की बातों को शांत होकर सुनते रहे और अंत में उन्होंने उसकी बातों पर बड़ा ही सुंदर उत्तर दिया। राजा रहूगण में श्रद्धा तो थी ही, वह समझ गया कि ये छद्यवेष में कोई तत्त्वज्ञ महात्मा हैं। अत: वह पालकी से उतर गया और अपने अविनय के लिए जड़भरत जी से क्षमा मांगने लगा। अंत में महात्मा जड़भरत जी ने तत्त्वज्ञान का बहुमूल्य उपदेश देकर राजा रहूगण को निहाल कर दिया।  

PunjabKesari Story of Jada Bharata

Related Story

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!