Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Jul, 2021 02:51 PM
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राज ऋषि भरत भगवान ऋषभदेव के 100 पुत्रों में सबसे बड़े थे। इनका विवाह विश्वरूप की पञ्चजनी नामक कन्या से हुआ, जिससे इनके पांच पुत्र जन्मे। अजनाभखंड के नाम से पहले प्रसिद्ध यह भारतवर्ष इन्हीं के
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Rishabh dev bhagwan ka jeevan parichay: राज ऋषि भरत भगवान ऋषभदेव के 100 पुत्रों में सबसे बड़े थे। इनका विवाह विश्वरूप की पञ्चजनी नामक कन्या से हुआ, जिससे इनके पांच पुत्र जन्मे। अजनाभखंड के नाम से पहले प्रसिद्ध यह भारतवर्ष इन्हीं के नाम पर भरतखंड अथवा भारतवर्ष कहलाया। ये सब शास्त्रों के मर्मज्ञ, अपने पिता के समान धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करने वाले तथा भगवान के भक्त थे। इन्होंने भगवान की प्रसन्नता के लिए अनेक यज्ञ किए और उसका फल भगवान को समर्पित कर दिया।
इस प्रकार भक्तियोग का आचरण करते हुए इन्होंने हजारों वर्ष व्यतीत किए और फिर अपने पुत्रों को राज्य भार सौंप कर इन्होंने भगवान की एकान्तिक भक्ति के लिए पुलह ऋषि के आश्रम हरिक्षेत्र के लिए प्रस्थान किया।
Story of king bharat: हरिक्षेत्र के विद्या भर कुंड में आज भी भगवान अपनी आराधना करने वाले भक्तों को अपने स्वरूप सान्निध्य का सुख प्रदान करते हैं। पुलह ऋषि के आश्रम के चारों ओर बहने वाली गंडकी नदी शालग्राम शिला के चक्रों से आश्रम को पवित्र करती है। उस आश्रम की सात्विक पुष्पवाटिका में रह कर राजऋषि भरत पुष्प, तुलसी दल एवं फल आदि सामग्री से भगवान की आराधना करने लगे। एक दिन जब वह गंडकी नदी में स्नान करके उसके तट पर प्रणव मंत्र का जप कर रहे थे तभी वहां जल पीने की इच्छा से एक हिरणी आई। उसने ज्यों ही जल पीना आरंभ किया। त्यों ही सिंह के दहाड़ने की आवाज सुनाई पड़ी। उस बेचारी ने भय से व्याकुल होकर नदी के उस पार छलांग लगा दी।
उसी समय उसका बच्चा उसके गर्भाशय से बाहर निकल कर नदी के प्रवाह में गिर पड़ा और हिरणी ने भी एक गुफा में जाकर प्राण त्याग दिए।
दयालु ऋषि ने उस मातृहीन बच्चे को बाहर निकाल लिया और अनाथ समझ कर उसे अपने आश्रम पर ले आए। धीरे-धीरे उस बच्चे में उनकी आसक्ति और ममता हो गई। फलस्वरूप उसके पीछे उनका सारा धर्म कर्म छूट गया।
वह रात दिन उसी के लालन-पालन में लगे रहते थे। वह सोचते कि कालचक्र ने ही उस बच्चे को माता-पिता से छुड़ाकर मेरी शरण में पहुंचाया है। अत: इस शरणागत की सब प्रकार से रक्षा करना ही मेरा धर्म है।
एक दिन वह मृग शावक खेलता-खेलता आश्रम से बाहर दूर निकल गया और फिर लौट कर नहीं आया। राज ऋषि भरत उसके वियोग में व्याकुल हो गए और उसे याद करके रोने लगे।
इस प्रकार उनके प्रारब्ध ने ही हिरण का रूप धारण करके उन्हें योग मार्ग और भगवान की भक्ति से विरक्त कर दिया। अन्यथा सर्वस्व त्याग राज ऋषि भरत की हिरण में आसक्ति कैसे होती। एक दिन उस हिरण की चिंता में ही उनका अंतकाल उपस्थित हो गया।
मृगशावक का ध्यान करते हुए प्राण त्याग करने के कारण उन्हें अगले जन्म में हिरण का शरीर प्राप्त हुआ किन्तु भगवान की आराधना के फल से उन्हें पूर्व जन्म की स्मृति बनी रही। अब वह पूर्ण रूप से सावधान थे। उन्होंने अपने हिरण परिवार को छोड़ दिया और पुलह ऋषि के आश्रम में मुनि की भांति विचरने लगे।
Jad Bharat Story: मृत्यु काल आने पर उन्होंने हिरण का शरीर त्याग दिया और तीसरे जन्म में ब्राह्मण बन यहां जन्म लिया। वहां उनका नाम जड़भरत हुआ तथा उसी शरीर से उन्हें मुक्ति प्राप्त हुई।