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दूसरे की पत्नी पर बुरी नजर डालने वाला बन गया अजगर

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 Dec, 2024 01:00 AM

story of king nahush

Story of King Nahush: वृत्रासुर का वध करने पर देवराज इंद्र को ब्रह्महत्या लगी। इस पाप के भय से वे जाकर एक सरोवर में छिप गए। देवताओं को जब ढूंढने पर भी देवराज का पता नहीं लगा, तब वे बड़े चितिंत हुए। स्वर्ग का राज्य सिंहासन सूना रहे तो त्रिलोकी में...

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Story of King Nahush: वृत्रासुर का वध करने पर देवराज इंद्र को ब्रह्महत्या लगी। इस पाप के भय से वे जाकर एक सरोवर में छिप गए। देवताओं को जब ढूंढने पर भी देवराज का पता नहीं लगा, तब वे बड़े चितिंत हुए। स्वर्ग का राज्य सिंहासन सूना रहे तो त्रिलोकी में सुव्यवस्था कैसे रह सकती है। अंत में देवताओं ने देवगुरु बृहस्पति की सलाह से राजा नहुष को इंद्र के सिंहासन पर तब तक के लिए बिठाया, जब तक इंद्र का पता न लग जाए।

PunjabKesari Story of King Nahush

इंद्रत्व पाकर राजा नहुष प्रभुता के मद से मदान्ध हो गए। उन्होंने इंद्र की पत्नी शची देवी को अपनी पत्नी बनाना चाहा। शची के पास दूत के द्वारा उन्होंने संदेश भेजा- मैं जब इंद्र हो चुका हूं, इंद्राणी को मुझे स्वीकार करना ही चाहिए।

पतिव्रता शची देवी बड़े संकट में पड़ीं। अपने पति की अनुपस्थिति में पति के राज्य में अव्यवस्था हो, यह भी उन्हें स्वीकार नहीं था और अपना पतिव्रत भी उन्हें परम प्रिय था। वह भी देवगुरु की शरण में पहुंचीं। बृहस्पति जी ने उन्हें आश्वासन देकर युक्ति बतला दी। देवगरु के आदेशानुसार शची ने उस दूत के द्वारा नहुष को कहला दिया, यदि राजेंद्र नहुष ऐसी पालकी पर बैठकर मेरे पास आवें जिसे सप्तर्षि ढो रहे हों तो मैं उनकी सेवा में हूं।

काम एवं अधिकार के मद से मतवाले नहुष ने महर्षियों को पालकी ले चलने की आज्ञा दी। राग, द्वेष तथा मान-अपमान से रहित सप्तर्षिगणों ने नहुष की पालकी उठा ली, लेकिन वे ऋषिगण इस भय से कि पैरों के नीचे कोई चींटी या अन्य जीव दब न जाए, भूमि को देख-देख कर धीरे-धीरे पैर रखते चलते थे।

उधर कामातुर नहुष को इंद्राणी के पास शीघ्र पहुंचने की आतुरता थी। वह बार-बार ऋषियों को शीघ्र चलने को कह रहे थे लेकिन ऋषि तो अपनी इच्छानुसार ही चलते रहे।

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सर्प! सर्प! (शीघ्र चलो, शीघ्र चलो) कह कर नहुष ने झुंझलाकर पैर पटका। संयोगवश उसका पैर पालकी ढोते महर्षि भृगु को लग गया।
महर्षि के नेत्र लाल हो उठे। पालकी उन्होंने पटक दी और हाथ में जल लेकर शाप देते हुए बोले, दुष्ट, तू अपने से बड़ों के द्वारा पालकी ढुवाता है और मदांध होकर पूजनीय लोगों को पैर से ठुकराकर सर्प, सर्प कहता है, अत: सर्प होकर यहां से गिर जा। महर्षि भृगु के शाप देते ही नहुष का तेज नष्ट हो गया। भय के मारे वह कांपने लगे। शीघ्र ही वह बड़े भारी अजगर होकर स्वर्ग से पृथ्वी पर गिर पड़े।

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