Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Jul, 2024 04:57 PM
जब भगवान श्री कृष्ण माता देवकी और पिता वासुदेव को कंस के चंगुल से छुड़ाने गए तब उनकी उम्र चौदह वर्ष की थी। माता देवकी ने उनसे पूछा, ‘‘बेटा, तुम तो भगवान हो।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जब भगवान श्री कृष्ण माता देवकी और पिता वासुदेव को कंस के चंगुल से छुड़ाने गए तब उनकी उम्र चौदह वर्ष की थी। माता देवकी ने उनसे पूछा, ‘‘बेटा, तुम तो भगवान हो। तुम तो हमें कंस के चंगुल से पहले भी छुड़ा सकते थे तो इतनी देर क्यों कर दी?’’
श्री कृष्ण ने कहा, ‘‘माता, आपने मुझे पिछले जन्म में चौदह वर्ष का बनवास नहीं दिया था।’’
माता देवकी हैरान रह गईं और बोलीं, ‘‘यह क्या कह रहे हैं आप?’’
तब श्री कृष्ण ने बताया कि ‘‘मैं राम था और आप थीं माता कैकेयी। आप ही ने मुझे चौदह वर्ष का वनवास दिया था। माते! कर्मफल से कोई बच नहीं सकता इसलिए आपको चौदह वर्ष का दुख सहना पड़ा।’’
तब आश्चर्यचकित होते हुए माता ने कहा, ‘‘फिर यशोदा पिछले जन्म में कौन थीं ?’’
कान्हा मुस्कुराते हुए बोले, ‘‘माते, वह थीं माता कौशल्या जो चौदह वर्ष तक अपने पुत्र से अलग रहीं जिन्होंने उस दुख को सहा था इसलिए इस जन्म में चौदह वर्ष उनके पास रहा और मेरे साथ रहने से उन्हें माता और पुत्र प्रेम का सुख मिला।’’
कहने का सार यह है कि कर्मफल से न उस युग में कोई बच सका था और न ही आज कोई बचेगा। स्वयं भगवान इस कर्मफल से नहीं बच सकते। इसलिए हर कार्य को बहुत सोच-समझ कर कीजिए क्योंकि जिसके भी खिलाफ आप कुछ गलत कर रहे हैं उससे आपकी शत्रुता कुछ समय या शायद एक जन्म की नहीं। उसके साथ कुछ गलत करके अपने कई जन्म बिगाड़ सकते हैं।
गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि मनुष्य अपना कर्म करते हुए ही जीवन में संसिद्धि को प्राप्त करता है। परमात्मा ने जीवों की सृष्टि के क्रम में सबका मंगल करने के लिए मनुष्य को बुद्धि-विवेक से अलंकृत कर जीवों में श्रेष्ठतर स्थान प्रदान किया, इसीलिए उस पर अन्य प्राणियों के योगक्षेम का भार भी था। इसके साथ ही इस सरलतम सिद्धांत का प्रतिपादन किया कि मनुष्य के कर्म ही उसके सुख-दुख का कारण बनेंगे। इसमें परमात्मा का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।