Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Apr, 2022 01:09 PM
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संत नामदेव के पिता दामा सेठ कपड़े सिलने का काम करते थे। वह चाहते थे कि नामदेव उनके ही काम को आगे बढ़ाएं पर नामदेव तो दिन भर मंदिर में भजन-कीर्तन करते रहते थे। इससे दामा सेठ बहुत दुखी रहते।
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Story of Sant Namdev ji: संत नामदेव के पिता दामा सेठ कपड़े सिलने का काम करते थे। वह चाहते थे कि नामदेव उनके ही काम को आगे बढ़ाएं पर नामदेव तो दिन भर मंदिर में भजन-कीर्तन करते रहते थे। इससे दामा सेठ बहुत दुखी रहते। एक दिन उन्होंने नामदेव को कपड़े का एक गट्ठर दिया और कहा कि इसे वह बाजार में बेच आए। नामदेव बाजार पहुंचे।
वह कपड़े का गट्ठर सामने रखकर भगवान विट्ठल के ध्यान में मग्न हो गए। सभी की कमाई हो गई पर नामदेव खाली ही बैठे रहे। वहीं पास के खेत में कुछ पत्थर पड़े थे। उन्होंने पत्थरों को कपड़े से ढक दिया और एक बड़े पत्थर से कहा कि 8 दिन बाद फिर आऊंगा। तुम पैसे दे देना ताकि पिता जी को हिसाब दे सकूं।
जब पिता जी ने पूछा तो कहा कि 8 दिन बाद पैसे मिलेंगे। 8 दिन बाद नामदेव उस बड़े पत्थर के पास गए और पैसे मांगने लगे पर वह कहां से देता। नामदेव ने गुस्से में उसे उठाया और पंढरपुर के विट्ठल मंदिर के पास ले आए और बोले कि तुम ही अब बापू को जवाब दे देना।
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दामा सेठ गुस्से में बौखला रहे थे। कपड़े के बदले पत्थर लेकिन जब उन्होंने नजदीक आकर देखा तो पूरा पत्थर सोने का हो गया था। देखते ही देखते समाचार सभी ओर फैल गया। जिस किसान के खेत का पत्थर था, वह आकर अपने खेत का सोने का पत्थर वापस मांगने लगा।
इस पर नामदेव ने उससे अपने कपड़े के पैसे मांगे। किसान से कपड़े के पैसे मिलने पर वह पत्थर उसे वापस दे दिया। घर जाकर किसान ने देखा कि वह तो फिर पत्थर बन गया। वह गुस्से में नामदेव जी के घर में पत्थर वापस रख आया। आज भी उस पत्थर की पूजा संत नामदेव के मंदिर में होती है।
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