महर्षि दुर्वासा ने किया भक्त का अपमान तो हुआ कुछ एेसा....

Edited By Jyoti,Updated: 05 Apr, 2018 12:20 PM

story of sudarshan chakra and maharishi durvasa

प्राचीन समय में अम्बरीष नामक एक धर्मात्मा राजा थे, जिवके राज्य में बहुत सुख-शांति थी। वह हर प्रकार की मोह माया से मुक्त थे, ज्यादा से ज्यादा समय प्रभु भक्ति में लगाते थे। उनके विचार थे कि भौतिक सुख-साधना, सामग्री आदि सब सब एक दिन नष्ट हो जाएगी

प्राचीन समय में अम्बरीष नामक एक धर्मात्मा राजा थे, जिनके राज्य में बहुत सुख-शांति थी। वह हर प्रकार की मोह माया से मुक्त थे, अपना अधिकतर समय वे प्रभु भक्ति में लगाते। उनके विचार थे कि भौतिक सुख-साधना, सामग्री आदि सब एक दिन नष्ट हो जाएगी परंतु भगवान की भक्ति इस लोक-परलोक में भी उनके साथ रहेगी। अम्बरीष की एेसी भक्ति भावना से ही प्रसन्न होकर ही श्री कृष्ण ने उनकी रक्षा का काम अपने सुदर्शन चक्र को सौंपा था। 


एक समय की बात है कि अम्बरीष ने एक वर्ष तक द्वादशी प्रधान व्रत रखने का नियम बनाया। वो हर द्वादशी को व्रत करते, ब्राह्मणों को भोजन करवाते तथा दान करने के उपरांत ही अन्न, जल ग्रहण कर व्रत का पारण करते। एक बार उन्होंने वर्ष की अंतिम द्वादशी को व्रत की समाप्ति पर भगवान विष्णु की पूजा की। महाभिषेक की विधि से सब प्रकार की सामग्री तथा सम्पत्ति से भगवान का अभिषेक किया तथा ब्राह्मणों, पुरोहितों को भोजन कराया, खूब दान दिया।


ब्राह्मण-देवों की आज्ञा से जब व्रत की समाप्ति पर पारण करने बैठे ही थे तो अचानक महर्षि दुर्वासा आ पधारे। अम्बरीष ने खड़े होकर आदर से उन्हें बैठाया और भोजन करने के लिए प्रार्थना करने लगे। ऋषि दुर्वासा ने कहा, “भूख तो बड़ी जोर की लगी है राजन ! पर थोड़ा रुको, मैं नदी में स्नान करके भोजन करूंगा।”


ऐसा कहकर ऋषि दुर्वासा वहा से चले गए। वहां स्नान-ध्यान में इतना डूब गए कि उन्हें याद ही न रहा कि अम्बरीष बिना उनको भोजन कराएं अपना व्रत का पारण नहीं करेंगे। ऋषि दुर्वासा को गए को बहुत देर हो चुकी थी और द्वादशी समाप्त होने जा रही थी। द्वादशी के रहते पारण न करने से व्रत खंडित हो सकता था और लेकिन वह दुर्वासा को खिलाएं बिना पारण भी नहीं कर सकते थे। इस विकट स्थिति के चलते अम्बरीष परेशान हो गए। अंत में ब्राह्मणों ने परामर्श दिया कि द्वादशी समाप्त होने में थोड़ा ही समय शेष है। पारण द्वादशी तिथि के अंदर ही होना चाहिए। दुर्वासा अभी नहीं आए। इसीलिए राजन! आप केवल जल पीकर पारण कर लीजिए। जल पीने से भोजन कर लेने का कोई दोष नहीं लगेगा और द्वादशी समाप्त न होने से व्रत खडिंत भी नहीं होगा।


 
शास्त्रो के विधान के अनुसार ब्राह्मणों की आज्ञा से उन्होंने व्रत का पारण कर लिया। अभी वह जल पी ही रहे थे कि दुर्वासा आ पहुंचे। दुर्वासा ने देखा कि मुझ ब्राह्मण को भोजन कराएं बिना अम्बरीष ने जल पीकर व्रत का पारण कर लिया और उन्होंने क्रोध में शाप देने के लिए हाथ उठाया ही था कि अम्बरीष ने विनयपूर्वक कहा-“ऋषिवर ! द्वादशी समाप्त होने जा रही थी। आप तब तक आए नहीं। वर्ष भर का व्रत खडिंत न हो जाए, इसीलिए ब्राह्मणों ने केवल जल ग्रहण कर पारण की आज्ञा दी थी। जल के सिवा मैंने कुछ भी ग्रहण नहीं किया है।”


परंतु उनका क्रोध शांत नहीं हुआ और उन्होंने जटा से एक बाल उखाड़कर जमीन पर पटक कर कहा-“लो, मुझे भोजन कराए बिना पारण कर लेने का फल भुगतो, इस बाल से पैदा होने वाली कृत्या ! अम्बरीष को खा जा।”


 
बाल के जमीन पर पड़ते ही एक भयंकर आवाज के साथ कृत्या राक्षसी प्रकट होकर अम्बरीष को खाने के लिए दौड़ी। भक्त पर निरपराध कष्ट आया देख उनकी रक्षा के लिए नियुक्त सुदर्शन चक्र सक्रिय हो उठा। चमक कर चक्राकार घूमते हुए कृत्या राक्षसी को मारा, फिर दुर्वासा की ओर बढ़ गया। भगवान के सुदर्शन चक्र को अपनी ओर आते देख दुर्वासा घबराकर भागे, पर चक्र उनके पीछे लग गया। चक्र से बचने के लिए वे भागने लगे। जहां कही भी छिपने का प्रयास करते, वहीं चक्र उनका पीछा करता। भागते-भागते ब्रह्मलोक में ब्रह्मा के पास पहुंचे और चक्र से रक्षा करने के लिए गुहार लगाई।

 

ब्रह्मा बोले-“दुर्वासा! मैं तो सृष्टि को बनाने वाला हूं। किसी की मृत्यु से मेरा कोई संबंध नहीं। आप शिव के पास जाएं, वे महाकाल हैं। वह शायद आपकी रक्षा करे।”दुर्वासा शिव के पास आए और अपनी सारी विपदा सुनाई। दुर्वासा की दशा सुनकर शिव को मुस्कुरा कर बोले-“दुर्वासा! तुम सबको शाप ही देते फिरते हो, ऋषि होकर क्रोध करते हो। मैं इस चक्र से तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकता, क्योंकि यह विष्णु का चक्र है, इसलिए तुम विष्णु के पास जाओ। वही चाहे तो अपने चक्र को वापस कर सकते है।”

 

दुर्वासा की जान पर आ पड़ी थी। भागे-भागे भगवान विष्णु के पास पहुंचे। चक्र भी वहां चक्कर लगाता पहुंचा। दुर्वासा ने विष्णु से अपनी प्राण-रक्षा की प्रार्थना की। विष्णु बोले-“दुर्वासा! तुमने तप से अब तक जितनी भी शक्ति प्राप्त की, वह सब क्रोध तथा शाप देने में नष्ट करते रहे हो। छोटी सी बात पर नाराज होकर झट से शाप दे देते हो। तुम तपस्वी हो। तपस्वी का गुण-धर्म क्षमा करना होता है। तुम्हीं विचार करो, अम्बरीष का क्या अपराध था? मैं तो अपने भक्तो के ह्रदय में रहता हूं। अम्बरीष के प्राण पर संकट आया तो मेरे चक्र ने उनकी रक्षा की। अब यह चक्र तो मेरे हाथ से निकल चुका है इसलिए जिसकी रक्षा के लिए यह तुम्हारे पीछे घूम रहा है, अब उसी की शरण में जाओ। केवल अम्बरीष ही इसे रोक सकते है।”


दुर्वासा भागते-भागते थक गए। भगवान विष्णु ने दुर्वासा को स्वयं नहीं बचाया, बल्कि उपाय बताया। दुर्वासा उल्टे पांव फिर भागे और अम्बरीष के पास पहुंते। अम्बरीष अभी भी बिना अन्न ग्रहण किए, उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। दुर्वासा को देखते ही उनको प्रणाम कर बोले-“मुनिदेव ! मैं तब से आपकी प्रतीक्षा में बिना अन्न ग्रहण किए केवल वही जल पिया है, आप कहां चले गए थे?

दुर्वासा ने चक्र की ओर इशारा करके कहा-“अम्बरीष! पहले इससे मेरी जान बचाओ। यह मेरे पीछे पड़ा है। तीनों लोकों के किसी देव ने भी रक्षी नहीं की। अब तुम ही इस चक्र से मेरे प्राण बचाओ।”

अम्बरीष हाथ जोड़कर बोले, “मुनिवर! आप अपना क्रोध शांत करे और मुझे क्षमा करे। भगवान विष्णु का यह चक्र भी आपको क्षमा करेगा।” अम्बरीष के इस कहते ही चक्र अंतर्धान हो गया।

Let's Play Games

Game 1
Game 2
Game 3
Game 4
Game 5
Game 6
Game 7
Game 8

Trending Topics

IPL
Delhi Capitals

162/8

20.0

Royal Challengers Bangalore

4/0

1.0

Royal Challengers Bengaluru need 159 runs to win from 19.0 overs

RR 8.10
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!