Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Feb, 2024 11:21 AM
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विषादग्रस्त समुद्र को देख कर सूर्यदेव ने प्रश्र किया, ‘‘हे रत्नाकर, आपकी यह दशा क्यों हुई ? यदि मैं आपके दुख निवारण में किंचित सहायक हो सका तो अपने आपको सौभाग्यशाली समझूंगा।’’
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Story of surya dev: विषादग्रस्त समुद्र को देख कर सूर्यदेव ने प्रश्र किया, ‘‘हे रत्नाकर, आपकी यह दशा क्यों हुई ? यदि मैं आपके दुख निवारण में किंचित सहायक हो सका तो अपने आपको सौभाग्यशाली समझूंगा।’’
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समुद्र ने अपनी व्यथा प्रकट करते हुए कहा, ‘‘हे आदित्य, मेरे पास अथाह जल का भंडार है, परंतु मैं इस जल राशि से एक पक्षी की भी प्यास नहीं बुझा सकता। मैं लोक कल्याण हेतु जल का उपयोग करने में असमर्थ हूं। बस इसी पीड़ा से मैं अत्यधिक व्यथित रहता हूं।’’
समुद्र के दुख का कारण जानकर सूर्य ने कहा, ‘‘हे महासागर ! ऐसी संपदा जो अपनी विशालता प्रदर्शित करने के लिए ही संचित की जाए और उसे लोक कल्याण में व्यय न किया जाए, वह सम्पत्ति इस खारे जल के समान ही अनुपयोगी और व्यर्थ सिद्ध होती है तथा अनेकानेक दुखों का कारण भी बनती है इसलिए बुद्धिमान को चाहिए कि अपने द्वारा संचित धन का समुचित अंश जन कल्याण हेतु समर्पित कर यश का भागी बने।’’
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समुद्र ने शंका प्रकट की, ‘‘परंतु मित्र मैं इस खारे पानी को किस प्रकार उपयोगी और हितकर बना सकता हूं। आदित्य, यदि आप कुछ उपाय करें तो मैं भी परमार्थ करके अपने को कृतकृत्य समझूंगा।’’
सूर्य ने कहा, ‘‘मैं अपनी तेज ऊष्मा से महान जलराशि का कुछ अंश वाष्पित कर दूंगा। ये वाष्प समूह ऊपर उठकर घटाओं के रूप में परिवर्तित हो जाएंगे। वायु के वेग से ये घटाएं सुदूर क्षेत्र में भिन्न-भिन्न स्थलों में वर्षा करके धरती और समस्त प्राणियों को तृप्त कर देंगी।’’
तुरंत ही दोनों ने मिल कर पवन देव को इस योजना की जानकारी देकर सहयोग के लिए प्रार्थना की। वह सहर्ष इस पुनीत कार्य में सहयोग देने के लिए तैयार हो गए। फिर क्या था, सूर्य ने प्रचंड गर्मी से समुद्र के जल को वाष्पित करना शुरू किया। वाष्पकणों से निर्मित काली घनी घटनाओं को वायु ने तीव्र गति से विभिन्न दिशाओं की ओर पहुंचाया।
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रिमझिम बारिश से प्यासी धरा की तृषा शांत हो गई। पृथ्वीवासी सभी प्राणी प्रसन्न हो गए। अनेकानेक जीव-जंतु अपनी मधुर आवाज से हर्षयुक्त कोलाहल करने लगे। वास्तव में वह कोलाहल मात्र न होकर अपने जल प्रदाता के निमित कृतज्ञता ज्ञापन और उसका यशगान था। नवांकुरित पौधों से सारी वसुधा हरी-भरी हो गई। शुष्क सरोवर जल से परिपूर्ण हो गए।
नदियां पर्याप्त जल सम्पदा से उफनने लगीं और अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए तीव्र गति से दौड़ पड़ीं, महान परोपकारी समुद्र की ओर। मार्ग में तालाबों, झरनों और छोटे नदी नालों ने भी समुद्र के लिए जल दान किया और उसकी प्रशंसा की। बड़ी नदियां एकत्रित जल लेकर चल पड़ीं। मीठी जल राशि का विशाल भंडार ले जाकर नदियों ने परोपकारी सागर को सर्वस्व समर्पित कर दिया। मीठे जल से संतृप्त उस महासागर को तब कितना संतोष और शांति मिली, यह उसके सिवा और कौन जान सकता है ?
सूरज ने देखा कि समुद्र के जल स्तर में रत्ती भर की कमी नहीं आई थी और न ही स्वयं के तेज में। इस कार्य में सहयोगी हवा भी सोंधी महक से सुरभित हो गई थी।