Edited By Prachi Sharma,Updated: 03 Dec, 2023 07:35 AM
खुद को ज्यादा तुर्रम खां मत समझो’ या ‘खुद को बड़ा तुर्रम खां समझते हो’ जैसे डायलॉग आपने जरूर सुने होंगे। हो सकता है आप भी इनका
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The story of Turram Khan: ‘खुद को ज्यादा तुर्रम खां मत समझो’ या ‘खुद को बड़ा तुर्रम खां समझते हो’ जैसे डायलॉग आपने जरूर सुने होंगे। हो सकता है आप भी इनका इस्तेमाल करते हों। जब भी कोई शख्स खुद को तेज या रंगबाज दिखाने की कोशिश करता है, आम बोलचाल में उसको ‘तुर्रम खां’ कह दिया जाता है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि रंगबाजी दिखाने वाले व्यक्ति के लिए इस ‘तुर्रम खां’ नाम का इस्तेमाल क्यों करते हैं ? आखिर असली तुर्रम खां कौन था, जिसके नाम पर इतनी कहावतें और डायलॉग बन चुके हैं।
Led Hyderabad in the freedom struggle of 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में किया था हैदराबाद का नेतृत्व
आपको बता दें कि तुर्रम खां का असली नाम तुर्रेबाज खान था। इतिहास में तुर्रम खां को योद्धा माना जाता है। भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। आपको पता होगा कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी सबसे पहले बैरकपुर में लगी, जहां मंगल पांडे ने आजादी की लड़ाई की शुरुआत की। इसी आजादी के आंदोलन की आग हैदराबाद तक पहुंची जहां इसका नेतृत्व तुर्रेबाज खान ने किया था।
There is not much mention in history इतिहास में बहुत ज्यादा नहीं है जिक्र
हैदराबाद में हुए इस संग्राम का जिक्र इतिहास में बहुत ज्यादा नहीं मिलता लेकिन आजादी की लड़ाई में तुर्रेबाज ने ब्रिटिश रेजीडेंसी पर हमला कर दिया। अंग्रेजों के खिलाफ उन्होंने 6,000 सैनिकों की फौज तैयार की और उसका नेतृत्व किया। दरअसल, पहले स्वतंत्रता संग्राम के वक्त हैदराबाद के एक जमादार चीदा खान ने दिल्ली कूच करने से मना कर दिया। ऐसे में अंग्रेजों ने उसे धोखे से कैद कर लिया। उसी को छुड़ाने का जिम्मा तुर्रेबाज खान ने उठाया और अंग्रेजों पर धावा बोल दिया।
Attacked the British at night रात में अंग्रेजों पर बोला धावा
तुर्रेबाज खान ने चीदा खान को अंग्रेजों की गिरफ्त से छुड़ाने का प्लान बनाया। उन्होंने 500 लोगों की फौज के साथ रात में रेजीडेंसी हाऊस पर धावा बोल दिया। हालांकि उनके साथ एक गद्दार ने धोखा किया और अंग्रेजों को पहले ही इस योजना के बारे में बता दिया। बताया जाता है कि निजान के वजीर सालारजंग ने तुर्रेबाज खान के साथ गद्दारी की।
Escaped by dodging चकमा देकर हुए फरार
जब तुर्रेबाज खान रेजीडेंसी हाऊस पहुंचे तो अंग्रेज पहले से ही तोपें और बंदूकें लेकर तैयार खड़े थे। अंग्रेजों की इस कार्रवाई की तुर्रम खां को भनक तक नहीं थी। उनके पास केवल तलवारें थीं। जब उन्होंने हमला किया तो अंग्रेज उनकी फौज पर तोपें और बंदूकें लेकर बरसने लगे। भले ही तुर्रेबाज खान के पास हथियार और फौज की कमी थी लेकिन फिर भी उन्होंने रातभर अंग्रेजों का सामना किया। कहा जाता है कि इस युद्ध में अंग्रेज उन्हें पकड़ नहीं पाए और वह गोरों की इतनी बड़ी फौज को चकमा देकर वहां से निकल गए।
Succeeded in escaping from jail जेल से फरार होने में रहे कामयाब
तुर्रम खां के फरार होने से अंग्रेजी हुकूमत की चिंता बढ़ गई। वह जंगल में छिप गए लेकिन एक गद्दार ने इसकी सूचना अंग्रेजों को दे दी और उन्हें जंगल से पकड़ लिया गया। हैदराबाद कोर्ट ने उन्हें काला पानी की सजा सुनाई। उनका नाम काला पानी की सजा काटने वालों में गिना जाता है। तुर्रम खां जनवरी 1859 को जेल से फरार होने में कामयाब हो गए। इसके बाद अंग्रेजों ने उन पर 5000 रुपए का ईनाम रख दिया लेकिन कुछ दिनों बाद एक गद्दार तालुकदार मिर्जा कुर्बान अली बेग ने तूपरण के जंगलों में धोखे से उनको मार दिया लेकिन आज भी तुर्रेबाज खान यानी तुर्रम खां को उनके पराक्रम और बहादुरी के कारण याद किया जाता है।