Edited By Jyoti,Updated: 17 Feb, 2021 12:22 PM
पाराशर ऋषि भगवान शिव के अनन्य उपासक थे। उन्हें अपनी मां से पता चला कि उनके पिता तथा भाइयों का राक्षसों ने वध कर दिया।
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पाराशर ऋषि भगवान शिव के अनन्य उपासक थे। उन्हें अपनी मां से पता चला कि उनके पिता तथा भाइयों का राक्षसों ने वध कर दिया। उस समय पाराशर गर्भ में थे। उन्हें यह भी बताया गया कि यह सब विश्वामित्र के श्राप के कारण ही राक्षसों ने किया। तब तो वह आग बबूला हो उठे। अपने पिता तथा भाइयों के यूं किए वध का बदला लेने का निश्चय कर लिया। इसके लिए भगवान शिव से प्रार्थना कर आशीर्वाद भी मांग लिया।
जब पाराशर के दादा महर्षि वशिष्ठ को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपने युवा पोते पाराशर को पास बुलाया और समझाते हुए कहा-राक्षसों ने तुम्हारे परिवारजनों को मारा। अब तुम उनका वध करने की सोच बैठे हो। तुमने बदला जो लेना है...मगर। कहिए, पितामह कहिए। चुप क्यों हो गए?
मैं कह रहा था- यदि तुम राक्षसों को मार देते हो तो राक्षसों के व्यवहार तथा तुम्हारे व्यवहार में क्या अंतर हुआ? शायद जरा भी नहीं...। दोनों का आचरण एक जैसा है न?
तब ऋषि पाराशर ने झुककर कहा- दादा श्री, मैं आपको वचन देता हूं कि मैं खून का बदला खून से नहीं लूंगा। यह मेरा आपको वचन है। यह बात दैत्यों के कुल गुरु महर्षि पुलस्त्य ने सुनी। वह प्रकट हुए। पाराशर को आशीर्वाद दिया। बोले-बेटा तुमने राक्षसों को क्षमा करने के लिए अपने क्रोध पर संयम किया है। यह देवोचित आचरण है। हम प्रसन्न हुए। हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। तुम धर्म शास्त्रों के महान ज्ञाता बनोगे। खूब प्रसिद्धि पाओगे। लोग तुम्हारा सम्मान करेंगे। —सुदर्शन भाटिया