Edited By Jyoti,Updated: 18 Jul, 2019 07:30 PM
जब भी भगवान शिव की प्रिय चीज़ों के बारे में बात होती है तो इसमें त्रिशूल, डमरू औ गले में धारण सर्प की माला का नाम आता है। कहते हैं भगवान शंकर के लिए ये तीनों उनके शरीर के अंगों के समान है।
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जब भी भगवान शिव की प्रिय चीज़ों के बारे में बात होती है तो इसमें त्रिशूल, डमरू औ गले में धारण सर्प की माला का नाम आता है। कहते हैं भगवान शंकर के लिए ये तीनों उनके शरीर के अंगों के समान है। शिव जी के लिए इनका खास होना ही इनके अपने आप में महत्वता बढ़ाता है। हिंदू धर्म में इन तीनों की भी पूजा-अर्चन का महत्व है। मगर बहुत कम लोग होंगे हैं इनके महत्व से तथा इनके विशेषता से रूबरू है। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं एक ऐसे शिव मंदिर में जहां महादेव के साथ-साथ उनके खंडित त्रिशूल की भी पूजा होती है।
हम जानते हैं ये जानकर आप सबको हैरानी हुई होगी क्योंकि हिंदू धर्म की प्रचलित मान्यताओं के अनुसार खंडित चीज़ों को घर में भी नहीं रखा जाता तो मंदिर में रखना तो दूर की बात है। अब सवाल है कि क्यों इस मंदिर में एक खंडित शिवलिंग को पूजा जाता है। तो चलिए जानते हैं कहां है ये मंदिर और क्या है इसका रहस्य-
जम्मू से 120 कि.मी. दूर समुद्र तल से 1225 मीटर की ऊंचाई पर, पटनीटॉप के पास सुध महादेव मंदिर जिसे शुद्ध महादेव मंदिर भी कहा जाता है, स्थित है। यह मंदिर शिव जी के प्रमुख मंदिरो में से एक है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां पर एक विशाल त्रिशूल के तीन टुकड़े ज़मीन में गढ़े हुए हैं। जिसके बारे में कहा जाता है कि ये स्वयं भगवान शिव के हैं। इसी मंदिर से कुछ दूरी पर माता पार्वती की जन्म भूमि मानतलाई है। जिसका निर्माण आज से लगभग 2800 वर्ष पूर्व हुआ था जिसका पुनर्निर्माण लगभग एक शताब्दी पहले एक स्थानीय निवासी रामदास महाजन और उसके पुत्र ने करवाया था। बता दें इस मंदिर में प्राचीन शिवलिंग, नंदी और शिव परिवार की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार की कहानी के अनुसार माता पार्वती नित्य मानतलाई से यहां यानि सुध महादेव मंदिर में पूजन करने आती थी। एक दिन जब पार्वती वहां पूजा कर रही थी तभी सुधान्त राक्षस, नामक भी वहां पूजन करने आया जो स्वयं भगवान शिव का परम भक्त था। जब सुधान्त ने माता पार्वती को वहां पूजन करते देखा तो वो उनके समीप जाकर खड़े हो गए। जैसे ही मां पार्वती ने पूजन समाप्त होने के बाद अपनी आंखे खोली तो अपने समक्ष एक राक्षस को खड़ा देखकर घबरा गई और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी। उनकी आवाज़ कैलाश पर समाधि में लीन भगवान शिव तक पहुंच गई। महादेव ने पार्वती की जान खतरे में जान कर राक्षस को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका। त्रिशूल आकर सुधान्त के सीने में लगा। त्रिशूल फेंकने के थोड़ी देर बाद शिवजी को ज्ञात हुआ कि अनजाने में उनसे बड़ी गलती हो गई। इसलिए उन्होंने वहां पर आकर सुधान्त को पुनः जीवन देने की पेशकश करी पर दानव सुधान्त ने इससे यह कह कर मना कर दिया की वो अपने इष्ट देव के हाथों से मरकर मोक्ष प्राप्त करना चाहता है। भगवान ने उसकी बात मान ली और उसे वरदान दिया कि यह जगह आज से तुम्हारे नाम यानि सुध महादेव के नाम से जानी जाएगी।
साथ ही उन्होंने त्रिशूल के तीन टुकड़े करके वहां गाढ़ दिए जो आज भी वही हैं। ( हालांकि कई जगह सुधान्त को दुराचारी राक्षस भी बताया गया है और कहा जाता है कि वो मंदिर में मां पार्वती पर बुरी नियत से आया था इसलिए भगवान शिव ने उसका वध कर दिया।) मंदिर परिसर में एक ऐसा स्थान भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां सुधान्त दानव की अस्थियां रखी हुई हैं।
त्रिशूल के तीनों टुकड़े मंदिर परिसर के खुले में गढ़े हुए हैं। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा त्रिशूल के ऊपर वाला, मध्यम आकर वाला बीच का हिस्सा है और सबसे नीचे का हिस्सा सबसे छोटा है जो कि पहले थोड़ा सा ज़मीन के ऊपर दिखाई देता था पर मदिर के अंदर टाईल लगाने के बाद वो फर्श के लेवल के बराबर हो गया है। इन टुकड़ों पर किसी अनजान लिपि में कुछ लिखा हुआ है जिसे कि आज तक पढ़ा नहीं जा सका। मंदिर के बाहर ही पाप नाशनी बावड़ी है जिसमे पहाड़ो से 24 घंटे 12 महीनों पानी आता रहता है। मान्यता है कि इसमें नहाने से सारे पाप नष्ट हो जाते है।