Sukhdev Thapar Birth Anniversary: आज है शहीद सुखदेव थापर की 116वीं जयंती, सदियों तक भारत रहेगा उनका आभारी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 May, 2023 10:23 AM

sukhdev thapar birth anniversary

सुखदेव थापर का जन्म 15 मई, 1907 को लुधियाना के एक हिन्दू परिवार में हुआ था। इनके पिता रामलाल और माता लल्ली

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Sukhdev Thapar's Birth Anniversary: सुखदेव थापर का जन्म 15 मई, 1907 को लुधियाना के एक हिन्दू परिवार में हुआ था। इनके पिता रामलाल और माता लल्ली देवी थीं। भाई का नाम मथुरादास थापर था। पिता के देहांत के बाद इनका पालन-पोषण मां, ताऊ अचिंत राम और ताई जी ने किया था। ताऊ आर्य समाज से काफी प्रभावित थे, जिस कारण सुखदेव भी समाज सेवा व देशभक्तिपूर्ण कार्यों में आगे बढ़ने लगे।

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Sukhdev Thapar biography: बचपन से ही सुखदेव ने ब्रिटिश राज के अत्याचारों को देखा और समझना शुरू कर दिया था, जिस कारण इन्हें अपने देश में स्वतंत्रता की आवश्यकता बहुत पहले ही समझ आ गई थी। 1919 में जब सुखदेव महज 12 वर्ष के थे तो अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुए भीषण नरसंहार का स्कूली बालक सुखदेव के मन पर बहुत गहरा असर हुआ। स्कूल की पढ़ाई समाप्त करने के बाद इन्होंने 1922 लाहौर के नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया, जहां भगत सिंह से इनकी मुलाकात हुई। दोनों एक ही राह के पथिक थे, अत: शीघ्र ही दोनों का परिचय गहरी दोस्ती में बदल गया और देश के लिए सर्वोच्च न्योछावर करने तक साथ रहे।

1926 में लाहौर में सुखदेव, भगत सिंह, यशपाल, भगवती चरण व जयचन्द्र विद्यालंकार ने ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन किया। प्रारंभ में इसका काम नौतिक कार्यक्रम, साहित्यिक तथा सामाजिक विचारों पर विचार गोष्ठियों, स्वदेशी वस्तुओं, देश की एकता, सादा जीवन, शारीरिक व्यायाम तथा भारतीय संस्कृति इत्यादि पहलुओं पर चर्चा करना था।

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Hindustan Socialist Republican Army ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी
सितंबर 1928 में दिल्ली स्थित फिरोजशाह कोटला के खंडहर में उत्तर भारत के प्रमुख क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक हुई। इसमें एक केंद्रीय समिति का निर्माण हुआ और समिति का नाम ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ रखा गया। ब्रिटिश सरकार द्वारा गठित ‘साइमन कमिशन’ का विरोध करते हुए नेता लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए और 17 नवंबर, 1928 को देश ने एक महान स्वतंत्रता सेनानी खो दिया। लालाजी के देहांत का स्कॉट से बदला लेने के लिए सुखदेव ने भगत सिंह और राजगुरु के साथ मिलकर एक योजना बनाई।

18 दिसंबर, 1928 को भगत सिंह और शिवराम राजगुरु ने स्कॉट की गोली मारकर हत्या करने का प्लान बनाया था, लेकिन गलतफहमी में गोली जे.पी. सांडर्स को लग गई। इसमें भगत सिंह का सहयोग सुखदेव और चंद्रशेखर आजाद ने किया था। इस घटना के बाद ब्रिटिश पुलिस सुखदेव, आजाद, भगत सिंह और राजगुरु के पीछे लग गई। सुखदेव को इस पूरे प्रकरण के कारण ही लाहौर षड्यंत्र में सह-आरोपी बनाया गया।

15 अप्रैल, 1929 को सुखदेव, किशोरी लाल तथा अन्य क्रांतिकारियों को पकड़ कर लाहौर जेल में रखा गया। जेल में खराब गुणवत्ता के खाने और जेलर के अमानवीय व्यवहार के बिरुद्ध कैदियों ने 13 जुलाई, 1929 को भूख हड़ताल शुरू कर दी जो 63 दिन तक चली। इसमें क्रांतिकारी जतिंद्र नाथ दास शहीद हो गए, जिससे क्रांतिकारियों में भयंकर आक्रोश फैल गया। कैदियों ने आमरण अनशन शुरू कर दिया और क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के नेतृत्व खाने के बर्तनों को बजाकर ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ गाना गुनगुनाते थे।

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Young India यंग इंडिया
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च, 1931 को फांसी देने का निर्णय सुनाया गया। वीर विनायक दामोदर सावरकर सहित देश के सभी बड़े क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु की फांसी का विरोध कर रहे थे, लेकिन गांधीजी इस पूरे मामले पर खामोश थे। सुखदेव ने जेल से ही गांधीजी को एक पत्र भी लिखा जो की भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत के बाद 23 अप्रैल, 1931 को ‘यंग इंडिया’ समाचार पत्र में छपा था। इसमें सुखदेव ने साफ शब्दों में अपने विचार व्यक्त करते हुए गांधीजी को इस बात से अवगत कराया था कि उनका उद्देश्य केवल बड़ी-बड़ी बातें करना ही नहीं, बल्कि सच यह है कि देशहित के लिए क्रांतिकारी किसी भी हद तक जा सकते हैं। ऐसे में गांधीजी यदि जेल में बंद कैदियों की पैरवी नहीं कर सकते तो उन्हें इन क्रांतिकारियों के खिलाफ नकारात्मक माहौल बनाने से भी बचना चाहिए।

ब्रिटिश सरकार को डर था कि यदि इनकी फांसी समय पर हुई तो जनता में एक और बड़ी क्रांति हो जाएगी, जिससे निपटना अंग्रेजों के लिए मुश्किल होगा। इस कारण सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु को निर्धारित समय से एक दिन पूर्व ही चुपचाप फांसी दे दी गई और इनके शवों को जेल के पीछे केरोसिन डालकर सतलुज नदी के तट पर जला दिया गया। उन तीनों को फांसी से पहले अंतिम बार अपने परिवार से भी नहीं मिलने दिया, ऐसे में देश में क्रांति और देशभक्ति का ज्वार उठना स्वाभाविक था। सुखदेव थापर ने मात्र 24 वर्ष की आयु में अपने प्राणों की आहुति देकर देशवासियों को जो मातृभूमि पर मिटने का संदेश दिया, उसके लिए सदियों तक देश उनका आभारी रहेगा।

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