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Sutak Kaal: हिंदू शास्त्रों से जानें, क्या है सूतक काल

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Feb, 2025 08:15 AM

sutak kaal

Sutak Kaal: सूतक काल एक विशेष धार्मिक अवधारणा है, जो हिंदू शास्त्रों में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह एक अशुद्धि का समय होता है, जो किसी विशेष घटना के बाद शुरू होता है और एक निर्धारित समय तक रहता है। इसका प्रभाव पूजा, व्रत, यज्ञ और अन्य धार्मिक...

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Sutak Kaal: सूतक काल एक विशेष धार्मिक अवधारणा है, जो हिंदू शास्त्रों में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह एक अशुद्धि का समय होता है, जो किसी विशेष घटना के बाद शुरू होता है और एक निर्धारित समय तक रहता है। इसका प्रभाव पूजा, व्रत, यज्ञ और अन्य धार्मिक कार्यों पर पड़ता है और इस दौरान कुछ विशेष कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है।

Sutak Kaal

सूतक काल के समय का महत्व और रहस्य:
शास्त्रों में सूतक का रहस्य:
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, सूतक का समय अशुद्धि और शोक का प्रतीक माना जाता है। यह आमतौर पर किसी परिवार में मृत्यु या जन्म (विशेष रूप से शिशु के जन्म) के बाद प्रारंभ होता है। कुछ शास्त्रों में कहा गया है कि सूतक काल तब तक जारी रहता है जब तक संबंधित व्यक्ति (जिनकी मृत्यु या जन्म हुआ है) की आत्मा पूरी तरह से शांति नहीं पा लेती। इस अवधि में मनुष्य के आसपास की ऊर्जा नकारात्मक होती है और इसका असर व्यक्ति के कर्मों पर पड़ सकता है।

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सूतक काल में अनुष्ठान का विशिष्ट तरीका: सूतक काल के दौरान पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान में गहरी सावधानी रखनी चाहिए। विशेष रूप से व्रत और यज्ञ को सूतक काल में बिना शुद्धि के नहीं किया जाता। इस दौरान धार्मिक कार्यों को संपन्न करने के लिए एक विशेष शुद्धता और मानसिक स्थिति की आवश्यकता होती है क्योंकि सूतक काल को अशुद्धि का समय माना जाता है। अगर इस काल में पूजा का आयोजन किया जाता है तो उसे विशेष ध्यान से और शुद्धता से करना होता है।

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शिशु जन्म और सूतक: शिशु के जन्म के समय एक विशेष प्रकार का सूतक होता है। यह मां और शिशु दोनों के लिए होता है और इस दौरान शिशु के जन्म से संबंधित तमाम कर्मों में परिवर्तन होता है। शास्त्रों में उल्लेख है कि इस समय विशेष पूजा और शुद्धि विधि अपनानी चाहिए ताकि शिशु के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आए और वह हर बुराई से बच सके।

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मृत्यु और सूतक: मृत्यु के बाद सूतक काल की शुरुआत होती है। यह विशेष रूप से परिवार के सदस्य या कोई करीबी व्यक्ति की मृत्यु पर लागू होता है। इस समय को कुछ दिन तक घर के भीतर धार्मिक कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है। यह समय जीवन और मृत्यु के चक्र को समझने और स्वीकारने का होता है। सूतक के दौरान शोक और संवेदनशीलता की स्थिति में मनुष्य को अपने मानसिक और शारीरिक कार्यों को धीमा और शांतिपूर्ण रखना चाहिए।

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गृहस्थ जीवन और सूतक: सूतक काल का प्रभाव केवल धार्मिक कार्यों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह व्यक्ति के सामान्य जीवन पर भी प्रभाव डालता है। यह काल व्यक्ति को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से शुद्धि और आत्मनिरीक्षण का अवसर प्रदान करता है। शास्त्रों में कहा गया है कि सूतक के दौरान घर में स्वच्छता बनाए रखना और अशुद्धि से बचना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह घर की सकारात्मक ऊर्जा को प्रभावित कर सकता है।

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सूतक काल में विशेष शांति साधना: सूतक काल के दौरान व्यक्ति को शांति साधना और मानसिक शांति की ओर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी जाती है। यह समय व्यक्ति को जीवन के उच्चतर उद्देश्य की ओर ध्यान देने का अवसर देता है और मन की नकारात्मकता को दूर करने का भी होता है। सूतक के समय, परिवार के लोग ध्यान, प्राणायाम, और साधना करते हुए आत्मा को शुद्ध करने की कोशिश करते हैं।

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सूतक काल के खत्म होने के बाद: सूतक काल समाप्त होने के बाद शुद्धि का एक समय आता है, जिसे पुण्यकाल कहा जाता है। इस दौरान व्यक्ति या परिवार धार्मिक कार्यों में फिर से सक्रिय रूप से भाग ले सकता है। शास्त्रों के अनुसार, सूतक समाप्त होने के बाद पुनः यज्ञ, पूजा, व्रत और शुभ कार्य आरंभ किए जा सकते हैं।

सूतक काल के अदृश्य और शास्त्रीय रहस्यों को समझने से व्यक्ति के जीवन में शांति, सकारात्मकता और आध्यात्मिक संतुलन आ सकता है।

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