Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Jan, 2024 10:44 AM
स्वामी दयानंद सरस्वती गंगा तट पर ठहरे हुए थे। उनके साथ एक गुस्सैल साधु भी रुका हुआ था। एक दिन वह स्वामी जी से किसी बात पर नाराज हो गया।
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Swami Dayanand Saraswati Story: स्वामी दयानंद सरस्वती गंगा तट पर ठहरे हुए थे। उनके साथ एक गुस्सैल साधु भी रुका हुआ था। एक दिन वह स्वामी जी से किसी बात पर नाराज हो गया। वह प्रतिदिन उनकी कुटिया के पास जाता और उन्हें गालियां देता, लेकिन स्वामी जी बुरा मानने की बजाय गालियां सुनकर मुस्कुरा देते थे। यह व्यवहार देखकर उनके भक्तों को बहुत आश्चर्य होता था। भक्त लोग कई बार आवेश में आकर साधु का अनिष्ट करने की सोचते तो स्वामी जी कहते कि एक न एक दिन उसे अपनी गलती का अहसास खुद हो जाएगा।
एक बार स्वामी जी के पास किसी ने फलों से भरी एक टोकरी भेजी। स्वामी जी ने उसमें से कुछ अच्छे-अच्छे फल निकाल कर उन्हें एक कपड़े में बांध कर अपने भक्त को उसे दे आने के लिए कहा। भक्त बेमन से साधु के पास पहुंचा और बोला ये फल स्वामी जी ने आपके लिए भेजे हैं। यह सुनते ही साधु क्रोध में आ गया। यह सुबह-सुबह किसका नाम ले लिया।
मुझे पता नहीं आज भोजन भी मिलेगा या नहीं ? चला जा, चला जा यहां से। ये फल मेरे लिए नहीं किसी और के लिए दिए होंगे। मैं तो उसे रोज गालियां देता हूं।
भक्त ने लौटकर सारा हाल बता दिया। उसकी बात सुनकर स्वामी जी बोले तुम अभी उनके पास जाओ और कहो कि आप गालियां नहीं देते, अमृत वर्षा करते हैं।
स्वामी जी चाहते हैं कि उसके कारण उसकी जो ऊर्जा क्षय होती है, उसकी भरपाई फल खाकर करें। भक्त ने साधु के पास वापस जाकर यह बात बताई। यह सुनकर साधु पर तो जैसे घड़ों पानी गिर गया। वह स्वामी जी के पास पहुंचा और उनके पैरों में गिर पड़ा। उसे अपने किए कार्यों पर बहुत शर्म आई एवं उसकी आंखों से पश्चाताप के आंसू निकल पड़े।