स्वामी प्रभुपाद: संसार में सुखी रहने का रहस्य

Edited By Prachi Sharma,Updated: 22 Dec, 2023 11:58 AM

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अनुवाद : यदि इस शरीर को त्यागने से पूर्व कोई मनुष्य इंद्रियों के वेगों को सहन करने तथा इच्छा एवं क्रोध के वेग को रोकने में समर्थ होता है, तो वह

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शन्कोतीहैव य: सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्।
कामक्रोधोद्भवं वेगं से युक्त: स सुखी नर:॥5.23॥

अनुवाद : यदि इस शरीर को त्यागने से पूर्व कोई मनुष्य इंद्रियों के वेगों को सहन करने तथा इच्छा एवं क्रोध के वेग को रोकने में समर्थ होता है, तो वह इस संसार में सुखी रह सकता है।

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तात्पर्य: यदि कोई आत्म साक्षात्कार के पथ पर अग्रसर होना चाहता है तो उसे भौतिक इंद्रियों के वेग को रोकने का प्रयत्न करना चाहिए। ये वेग हैं: वाणीवेग, क्रोधवेग, मनोवेग, उदरवेग, उपस्थवेग तथा जिह्वावेग। जो व्यक्ति इन विभिन्न इंद्रियों के वेगों को तथा मन को वश में करने में समर्थ है, वह गोस्वामी या स्वामी कहलाता है। ऐसे गोस्वामी नितांत संयमित जीवन बिताते हैं और इंद्रियों के वेगों का तिरस्कार करते हैं। 

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भौतिक इच्छाएं पूर्ण न होने पर क्रोध उत्पन्न होता है और इस प्रकार मन, नेत्र तथा वक्षस्थल उत्तेजित होते हैं। अत: इस शरीर का परित्याग करने से पूर्व मनुष्य को इन्हें वश में करने का अभ्यास करना चाहिए। जो ऐसा कर सकता है, वह स्वरूपप्रसिद्ध माना जाता है और आत्मा साक्षात्कार की अवस्था में वह सुखी रहता है। योगी का कर्तव्य है कि वह इच्छा तथा क्रोध को वश में करने का भरसक प्रयत्न करे।

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