स्वामी प्रभुपाद: पूर्णता की कसौटी है जीवन में अच्छे कर्म करना

Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 Feb, 2024 08:53 AM

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श्री भगवान ने कहा: जो पुरुष अपने कर्मफल के प्रति अनासक्त है और जो अपने कर्त्तव्य का पालन करता है, वही संन्यासी और असली योगी है। वह नहीं, जो

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अनाश्रित: कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः:।
 स संन्यासी च योगी च न निरग्रिर्न चाक्रिय:॥6.1॥

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अनुवाद एवं तात्पर्य : श्री भगवान ने कहा: जो पुरुष अपने कर्मफल के प्रति अनासक्त है और जो अपने कर्त्तव्य का पालन करता है, वही संन्यासी और असली योगी है। वह नहीं, जो न तो अग्नि जलाता है और न कर्म करता है।

इस अध्याय में भगवान बताते हैं कि अष्टांगयोग पद्धति मन तथा इंद्रियों को वश में करने का साधन है किन्तु इस कलियुग में सामान्य जनता के लिए इसे सम्पन्न कर पाना अत्यंत कठिन है। इस संसार में प्रत्येक मनुष्य अपने परिवार के पालनार्थ तथा अपनी सामग्री के रक्षार्थ कर्म करता है, किन्तु कोई भी मनुष्य बिना किसी स्वार्थ, किसी व्यक्तिगत तृप्ति के, चाहे वह तृप्ति केंद्रित हो या व्यापक, कर्म नहीं करता।

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पूर्णता की कसौटी है अच्छे कर्म करना, कर्म के फलों का भोग करने के उद्देश्य से नहीं। कृष्णभावनामृत में कर्म करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है, क्योंकि सभी लोग परमेश्वर के अंश हैं। शरीर के अंग अपनी तुष्टि के लिए नहीं, अपितु पूरे शरीर की तुष्टि के लिए कार्य करते हैं। इसी प्रकार जो जीव अपनी तुष्टि के लिए नहीं, अपितु परब्रह्म की तुष्टि के लिए कार्य करता है, वही पूर्ण संन्यासी या पूर्ण योगी है।

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