Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 Jun, 2024 10:39 AM
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योगाभ्यास करने वाले में दृढ़संकल्प हो और बिना विचलित हुए धैर्यपूर्वक अभ्यास करे। अंत में उसकी सफलता निश्चित है, उसे यह सोच कर इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए और यदि सफलता मिलने में विलम्ब हो रहा हो
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स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिॢवण्णचेतसा।
संकल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषत:।
मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्तत:।6.24।
अनुवाद एवं तात्पर्य : योगाभ्यास करने वाले में दृढ़संकल्प हो और बिना विचलित हुए धैर्यपूर्वक अभ्यास करे। अंत में उसकी सफलता निश्चित है, उसे यह सोच कर इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए और यदि सफलता मिलने में विलम्ब हो रहा हो तो निरुत्साहित नहीं होना चाहिए।
जहां तक संकल्प की बात है, मनुष्य को चाहिए कि उस गौरैया का आदर्श ग्रहण करे, जिसके सारे अंडे समुद्र की लहरों में मग्न हो गए थे।
कहते हैं कि एक गौरैया ने समुद्र तट पर अंडे दिए, किन्तु विशाल समुद्र उन्हें अपनी लहरों में समेट ले गया। इस पर गौरैया अत्यंत क्षुब्ध हुई और उसने समुद्र से अंडे लौटा देने के लिए कहा किन्तु समुद्र ने उसकी प्रार्थना पर कोई ध्यान नहीं दिया।
अत: उसने समुद्र को सुखा डालने की ठान ली। वह अपनी नन्ही-सी चोंच से पानी उलीचने लगी। सभी उसके इस असंभव संकल्प का उपहास करने लगे।
उसके इस कार्य की सर्वत्र चर्चा चलने लगी तो अंत में भगवान विष्णु के विराट वाहन पक्षीराज गरुड़ ने यह बात सुनी। उसे अपनी इस नन्ही पक्षी बहन पर दया आई और उसने उसकी सहायता करने का वचन दिया।
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गरुड़ ने तुरंत समुद्र से कहा कि वह उसके अंडे लौटा दे, नहीं तो उसे स्वयं आगे आना पड़ेगा। भयभीत समुद्र ने अंडे लौटा दिए। वह गौरैया गरुड़ की कृपा से सुखी हो गई। इस प्रकार जो कोई संकल्प के साथ नियमों का पालन करता है, भगवान निश्चित रूप से उसकी सहायता करते हैं।
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