स्वामी प्रभुपाद: मनुष्य के लिए मन को वश में करना अत्यंत कठिन हो जाता है

Edited By Prachi Sharma,Updated: 11 Aug, 2024 07:42 AM

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हे कृष्ण ! चूंकि मन चंचल (अस्थिर), उच्छृंखल, हठीला तथा अत्यंत बलवान है, अत: मुझे इसे वश में करना वायु को वश में करने से भी अधिक कठिन लगता है। मन इतना बलवान तथा दुराग्रही है कि कभी-कभी यह

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चञ्चलं हि मनः: कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्॥6.34॥

अनुवाद एवं तात्पर्य : हे कृष्ण ! चूंकि मन चंचल (अस्थिर), उच्छृंखल, हठीला तथा अत्यंत बलवान है, अत: मुझे इसे वश में करना वायु को वश में करने से भी अधिक कठिन लगता है। मन इतना बलवान तथा दुराग्रही है कि कभी-कभी यह बुद्धि का उल्लंघन कर देता है, यद्यपि उसे बुद्धि के अधीन माना जाता है। इस व्यवहार जगत में जहां मनुष्य को अनेक विरोधी तत्वों से संघर्ष करना होता है, उसके लिए मन को वश में कर पाना अत्यंत कठिन हो जाता है। कृत्रिम रूप में मनुष्य अपने मित्र तथा शत्रु दोनों के प्रति मानसिक संतुलन स्थापित कर सकता है, किन्तु अंतिम रूप में कोई भी संसारी पुरुष ऐसा नहीं कर पाता क्योंकि ऐसा कर पाना वेगवान वायु को वश में करने से भी कठिन है।

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यद्यपि बुद्धि को मन का नियंत्रण करना चाहिए, किन्तु मन इतना प्रबल तथा हठी है कि इसे अपनी बुद्धि से भी जीत पाना कठिन हो जाता है, जिस प्रकार अच्छी से अच्छी दवा द्वारा कभी-कभी रोग वश में नहीं हो पाता।

ऐसे प्रबल मन को योगाभ्यास द्वारा वश में किया जा सकता है, किन्तु ऐसा अभ्यास कर पाना अर्जुन जैसे संसारी व्यक्ति के लिए कभी भी व्यावहारिक नहीं होता। तो फिर आधुनिक मनुष्य के संबंध में क्या कहा जाए ?

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यहां पर प्रयुक्त उपमा अत्यंत उपयुक्त है- झंझावात को रोक पाना कठिन होता है और उच्छृंखल मन को रोक पाना तो और भी कठिन है। मन को वश में रखने का सरलतम उपाय, जिसे भगवान चैतन्य ने सुझाया है, यह है कि समस्त दैन्य के साथ मोक्ष के लिए ‘हरे कृष्ण’ महामंत्र की कीर्तन किया जाए।

विधि यह है-  मनुष्य को चाहिए कि वह अपने मन को पूर्णतया कृष्ण में लगाए। तभी मन को विचलित करने के लिए अन्य व्यस्तताएं शेष नहीं रह जाएंगी।
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