Edited By Prachi Sharma,Updated: 23 Sep, 2024 10:46 AM
भगवान ने कहा : हे पृथापुत्र, कल्याण कार्यों में निरत योगी का न तो इस लोक में और न परलोक में ही विनाश होता है। हे मित्र, भलाई करने वाला कभी बुराई से
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते।
न हि कल्याणकृत्कश्चिद् दुर्गतिं तात गच्छति॥6.40॥
अनुवाद एवं तात्पर्य : भगवान ने कहा : हे पृथापुत्र, कल्याण कार्यों में निरत योगी का न तो इस लोक में और न परलोक में ही विनाश होता है। हे मित्र, भलाई करने वाला कभी बुराई से पराजित नहीं होता।
यदि कोई समस्त भौतिक आशाओं को त्याग कर भगवान की शरण में जाता है तो इसमें न तो कोई क्षति होती है और न पतन। दूसरी ओर अभक्त जन अपने-अपने व्यवसायों में लगे रह सकते हैं फिर भी वे कुछ प्राप्त नहीं कर पाते।
भौतिक लाभ के लिए अनेक शास्त्रीय तथा लौकिक कार्य हैं। जीवन में आध्यात्मिक उन्नति अर्थात कृष्णभावनामृत के लिए योगी को समस्त भौतिक कार्यकलापों का परित्याग करना होता है।
शास्त्रों का आदेश है कि यदि कोई स्वधर्म का आचरण नहीं करता तो उसे पाप फल भोगना पड़ता है। जो लोग शास्त्रीय आदेशों के अनुसार संयमित रहते हैं और इस प्रकार क्रमश: कृष्णभावनामृत को प्राप्त होते हैं, वे निश्चित रूप से जीवन में उन्नति करते हैं।