Edited By Prachi Sharma,Updated: 29 Sep, 2024 09:38 AM
अथवा (यदि दीर्घकाल तक योग करने के बाद असफल रहे तो) वह ऐसे योगियों के कुल में जन्म लेता है जो अति बुद्धिमान हैं। निश्चय ही इस संसार में ऐसा जन्म दुर्लभ है।
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अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्।
एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम्॥6.42॥
अनुवाद एवं तात्पर्य : अथवा (यदि दीर्घकाल तक योग करने के बाद असफल रहे तो) वह ऐसे योगियों के कुल में जन्म लेता है जो अति बुद्धिमान हैं। निश्चय ही इस संसार में ऐसा जन्म दुर्लभ है।
यहां पर ऐसे योगियों के कुल में जो बुद्धिमान हैं जन्म लेने की प्रशंसा की गई है क्योंकि ऐसे कुल में उत्पन्न बालक को प्रारंभ से ही आध्यात्मिक प्रोत्साहन प्राप्त होता है। विशेषतया आचार्यों या गोस्वामियों के कुल में ऐसी परिस्थिति है। ऐसे कुल अत्यंत विद्वान होते हैं और परम्परा तथा प्रशिक्षण के कारण श्रद्धावान होते हैं। इस प्रकार वे गुरु बनते हैं। भारत में ऐसे अनेक आचार्य कुल हैं किन्तु अब वे अपर्याप्त विद्या तथा प्रशिक्षण के कारण पतनशील हो चुके हैं।
भगवत्कृपा से अभी भी कुछ ऐसे परिवार हैं जिनमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी योगियों को प्रश्रय मिलता है। ऐसे परिवारों में जन्म लेना सचमुच ही अत्यंत सौभाग्य की बात है।
सौभाग्यवश हमारे गुरु विष्णुपाद श्रीमद्भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी महाराज को तथा स्वयं हमें भी ऐसे परिवारों में जन्म लेने का अवसर प्राप्त हुआ। हम दोनों को बचपन से ही भगवद्भक्ति करने का प्रशिक्षण दिया गया। बाद में दिव्य व्यवस्था के अनुसार हमारी उनसे भेंट हुई।