Edited By Prachi Sharma,Updated: 15 Dec, 2024 06:00 AM
अनुवाद : हे महाबाहु अर्जुन, इनके अतिरिक्त मेरी एक अन्य पराशक्ति है, जो उन जीवों से युक्त है जो इस भौतिक अपरा प्रकृति के साधनों का विदोहन कर रहे हैं।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्॥7.5॥
अनुवाद : हे महाबाहु अर्जुन, इनके अतिरिक्त मेरी एक अन्य पराशक्ति है, जो उन जीवों से युक्त है जो इस भौतिक अपरा प्रकृति के साधनों का विदोहन कर रहे हैं।
तात्पर्य : इस श्लोक में स्पष्ट कहा गया है कि जीवन परमेश्वर की परा प्रकृति (शक्ति) है। अपरा शक्ति तो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि तथा अहंकार जैसे विभिन्न तत्वों के रूप में प्रकट होती है। भौतिक प्रकृति के ये दोनों रूप स्थूल (पृथ्वी आदि) तथा सूक्ष्म (मन आदि) अपरा शक्ति के ही प्रतिफल हैं।
जीवन जो अपने विभिन्न कार्यों के लिए अपरा शक्तियों का विदोहन करता रहता है स्वयं परमेश्वर की परा शक्ति है और यह वही शक्ति है जिसके कारण सारा संसार कार्यशील है। इस दृश्य जगत में कार्य करने की तब तक शक्ति नहीं आती, जब तक कि परा शक्ति अर्थात जीव द्वारा यह गतिशील नहीं बनाया जाता। शक्ति का नियंत्रण सदैव शक्तिमान करता है, अत: जीव सदैव भगवान द्वारा नियंत्रित होते हैं।
जीवों का अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। वे कभी भी समान रूप से शक्तिमान नहीं, जैसा कि बुद्धिहीन मनुष्य सोचते हैं। श्रीमद्भागवत में (10.87.30) जीव तथा भगवान के अंतर को इस प्रकार बताया गया है :
अपरिमिता धु्रवास्तनुभृतो यदि सर्वगता,
सतॢह न शास्यतेति नियमो धु्रव नेतरथा।
अजनि न यन्मयं तदविमुच्य नियन्तृ भवेत्,
सममनुजानतां यदमतं मतदृष्टतया॥
‘‘हे परम शाश्वत, यदि सारे देहधारी जीव आप ही की तरह शाश्वत एवं सर्वव्यापी होते तो वे आपके नियंत्रण में न होते किन्तु यदि जीवों को आपकी सूक्ष्म शक्ति के रूप में मान लिया जाए तब तो वे सभी आपके परम नियंत्रण में आ जाते हैं। अत: वास्तविक मुक्ति तो आपकी शरण में जाना है और इस शरणागति से वे सुखी होंगे। उस स्वरूप में ही वे नियन्ता बन सकते हैं। अत: अल्पज्ञ पुरुष जो अद्वैतवाद के पक्षधर हैं और इस सिद्धांत का प्रचार करते हैं कि भगवान और जीव सभी प्रकार से एक-दूसरे के समान हैं, वास्तव में दोषपूर्ण तथा प्रदूषित मन द्वारा निर्देशित होते हैं।’’
परमेश्वर कृष्ण ही एकमात्र नियन्ता हैं और सारे जीव उन्हीं के द्वारा नियंत्रित हैं, उनकी पराशक्ति हैं, क्योंकि उनके गुण परमेश्वर के समान हैं किन्तु वे शक्ति के विषय में कभी भी समान नहीं हैं। स्थूल तथा सूक्ष्म अपारशक्ति का उपभोग करते हुए पराशक्ति (जीव) को अपने वास्तविक मन तथा बुद्धि की विस्मृति हो जाती है।