स्वामी प्रभुपाद: मैं समस्त जीवों का जीवन तथा तपस्वियों का तप हूं

Edited By Prachi Sharma,Updated: 12 Jan, 2025 07:37 AM

swami prabhupada

अनुवाद एवं तात्पर्य : मैं पृथ्वी की आद्य सुगंध और अग्नि की उष्मा हूं। मैं समस्त जीवों का जीवन तथा तपस्वियों का तप हूं।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

पुण्यो गंध: पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु।।7.9।।

अनुवाद एवं तात्पर्य : मैं पृथ्वी की आद्य सुगंध और अग्नि की उष्मा हूं। मैं समस्त जीवों का जीवन तथा तपस्वियों का तप हूं।

PunjabKesari Swami Prabhupada

पुण्य का अर्थ है जिसमें विकार न हो, अत: आद्य। इस जगत में प्रत्येक वस्तु में कोई न कोई सुगंध होती है, यथा फूल की सुगंध या जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु आदि की सुगंध। समस्त वस्तुओं में व्याप्त अदूषित भौतिक गंध जो आद्य सुगंध है, वह कृष्ण है। इसी प्रकार प्रत्येक वस्तु का एक विशिष्ट स्वाद (रस) होता है और इस स्वाद को रसायनों के मिश्रण द्वारा बदला जा सकता है।

अत: प्रत्येक मूल वस्तु में कोई न कोई गंध तथा स्वाद होता है। विभावसु का अर्थ अग्नि है। अग्नि के  बिना न तो फैक्टरी चल सकती है न भोजन पक सकता है। यह अग्नि कृष्ण है। अग्नि का तेज (उष्मा) भी कृष्ण ही है। वैदिक चिकित्सा के अनुसार कुपच का कारण पेट में अग्नि की मंदता है। अत: पाचन तक के लिए अग्नि आवश्यक है।

PunjabKesari Swami Prabhupada

कृष्णभावनामृत में हम इस बात से अवगत होते हैं कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा प्रत्येक सक्रिय तत्व सारे रसायन तथा सारे भौतिक तत्व कृष्ण के कारण हैं। मनुष्य की आयु भी कृष्ण के कारण है।

अत: कृष्ण की कृपा से ही मनुष्य अपने को दीर्घायु या अल्पजीवी बना सकता है। अत: कृष्णभावनामृत प्रत्येक क्षेत्र में सक्रिय रहता है।  

PunjabKesari Swami Prabhupada
 

Related Story

    Trending Topics

    Afghanistan

    134/10

    20.0

    India

    181/8

    20.0

    India win by 47 runs

    RR 6.70
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!