Edited By Prachi Sharma,Updated: 06 Feb, 2025 01:16 PM
अब मैं तुमसे पूर्ण रूप से व्यावहारिक तथा दिव्य ज्ञान कहूंगा। इसे जान लेने पर तुम्हें जानने के लिए और कुछ भी शेष नहीं रहेगा। पूर्ण ज्ञान में प्रत्यक्ष जगत, इसके पीछे काम करने वाली आत्मा तथा इन दोनों के उद्गम सम्मिलित हैं।
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ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषत:।
यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्ये॥7.2॥
अनुवाद एवं तात्पर्य : अब मैं तुमसे पूर्ण रूप से व्यावहारिक तथा दिव्य ज्ञान कहूंगा। इसे जान लेने पर तुम्हें जानने के लिए और कुछ भी शेष नहीं रहेगा। पूर्ण ज्ञान में प्रत्यक्ष जगत, इसके पीछे काम करने वाली आत्मा तथा इन दोनों के उद्गम सम्मिलित हैं।
यह दिव्यज्ञान है। भगवान उपर्युक्त ज्ञानपद्धति बताना चाहते हैं, क्योंकि अर्जुन उनका विश्वस्त भक्त तथा मित्र है। चतुर्थ अध्याय के प्रारंभ में इसकी व्याख्या भगवान कृष्ण ने की थी और उसी की पुष्टि यहां पर हो रही है।
भगवद्भक्त द्वारा पूर्ण ज्ञान का लाभ भगवान से प्रारंभ होने वाली गुरु परम्परा से ही किया जा सकता है। अत: मनुष्य को इतना बुद्धिमान तो होना ही चाहिए कि वह समस्त ज्ञान के उद्गम को जान सके, जो समस्त कारणों का कारण है और समस्त योगों में ध्यान का एकमात्र लक्ष्य। जब समस्त कारणों के कारण का पता चल जाता है तो सभी ज्ञेय वस्तुएं ज्ञात हो जाती हैं और कुछ भी अज्ञेय नहीं रह जाता।