Edited By Prachi Sharma,Updated: 20 Apr, 2025 10:20 AM
अनुवाद एवं तात्पर्य: मैं मूर्खों तथा अल्पज्ञों के लिए कभी भी प्रकट नहीं हूं। उनके लिए तो मैं अपनी अंतरंग शक्ति द्वारा आच्छादित रहता हूं, अत: वे यह नहीं जान पाते कि मैं अजन्मा तथा अविनाशी हूं।
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नाहं प्रकाशः: सर्वस्य योगमायासमावृतः:।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्।7.25।।
अनुवाद एवं तात्पर्य: मैं मूर्खों तथा अल्पज्ञों के लिए कभी भी प्रकट नहीं हूं। उनके लिए तो मैं अपनी अंतरंग शक्ति द्वारा आच्छादित रहता हूं, अत: वे यह नहीं जान पाते कि मैं अजन्मा तथा अविनाशी हूं।
भावार्थ : यह तर्क दिया जा सकता है कि जब कृष्ण इस पृथ्वी पर विद्यमान थे और सबों के लिए दृश्य थे, तो अब वे सबों के समक्ष क्यों प्रकट नहीं होते किन्तु वास्तव में वे हर एक के समक्ष प्रकट नहीं थे।
जब कृष्ण विद्यमान थे तो उन्हें भगवान रूप में समझने वाले व्यक्ति थोड़े ही थे। पांडव तथा कुछ अन्य लोग उन्हें परमेश्वर के रूप में जानते थे, किन्तु सभी ऐसे नहीं थे। अभक्तों तथा सामान्य व्यक्ति के प्रति वे प्रकट नहीं थे इसीलिए भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं कि उनके विशुद्ध भक्तों के अतिरिक्त अन्य सारे लोग उन्हें अपनी तरह समझते हैं।
भगवान अपने दिव्य सच्चिदानंद रूप में ब्रह्मज्योति की अंतरंग शक्ति से आवृत्त हैं, जिसके फलस्वरूप अल्पज्ञानी निर्वेशषवादी परमेश्वर को नहीं देख पाते। भगवान कृष्ण न केवल अजन्मा हैं अपितु अव्यय भी हैं। वे सच्चिदानंद रूप हैं और उनकी शक्तियां अव्यय हैं।