Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 Dec, 2024 11:58 AM
स्वामी रामतीर्थ उन दिनों अमेरिका में थे। एक दिन उनके पास एक महिला आई। काफी देर वह दुखी हालत में बैठी रही। इन क्षणों में रामतीर्थ भी उससे कुछ बोले नहीं, बस करुणापूर्ण नेत्रों से उसकी ओर देखते रहे।
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Swami Ramatirtha story: स्वामी रामतीर्थ उन दिनों अमेरिका में थे। एक दिन उनके पास एक महिला आई। काफी देर वह दुखी हालत में बैठी रही। इन क्षणों में रामतीर्थ भी उससे कुछ बोले नहीं, बस करुणापूर्ण नेत्रों से उसकी ओर देखते रहे।
कुछ समय रोने के बाद उसने स्वामी जी को अपनी व्यथा सुनाई। कथा का सार इतना ही था कि वह प्रेम में छली गई थी। तन-मन-धन-जीवन, सब कुछ न्योछावर करने के बाद भी उसे धोखा मिला था। उसकी बातें सुनने के बाद रामतीर्थ बोले, बहन यहां हर कोई अपनी क्षमता के अनुसार बही बर्ताव करता है। जिसके पास शारीरिक, मानसिक क्षमता है वह उसी के अनुसार बर्ताव करने के लिए विवश है। जिनकी भावनाएं स्वार्थ एवं कुटिलता से भरी हैं वे तो बस क्षमा के पात्र हैं।
‘महिला का अगला प्रश्न था- “तब क्या जीवन में सच्चा प्रेम पाना असंभव है ?”
स्वामी रामतीर्थ ने कहा, “सच्चा प्रेम मिलता है पर उन्हें जो सच्चा प्रेम करना जानते हैं।”
महिला ने कहा, “मेरा प्रेम भी तो सच्चा था।” रामतीर्थ बोले, “नहीं बहन तुम्हारे प्रेम में स्वार्थ की मांग थी। सच्चा प्रेम तो सेवा, करुणा एवं श्रद्धा के रूप में ही प्रकट होता है।” रामतीर्थ की बातों का अर्थ उसकी समझ में आ गया। इसके बाद वह एक अस्पताल में नर्स बन गई।