Edited By Prachi Sharma,Updated: 08 Feb, 2025 12:32 PM
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भ्रमण के दौरान स्वामी विवेकानंद की मुलाकात एक संत से हुई जो अपने इलाके में काफी प्रसिद्ध थे। संत का बहुत बड़ा आश्रम था। उस आश्रम में कई शिष्य थे और संत
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Swami Vivekananda Story: भ्रमण के दौरान स्वामी विवेकानंद की मुलाकात एक संत से हुई जो अपने इलाके में काफी प्रसिद्ध थे। संत का बहुत बड़ा आश्रम था। उस आश्रम में कई शिष्य थे और संत के कमरे के बाहर उनकी बड़ी फोटो लगी हुई थी। संत के साथ विवेकानंद कई मुद्दों पर चर्चा करने लगे।
बातचीत के दौरान विदेशी संत ने कहा, “स्वामी जी आपके देश में कितना आडंबर है कि वहां के लोग पत्थर की मूर्ति की पूजा करते हैं। जब भगवान कण-कण में हैं तो फिर पत्थर की मूर्ति की पूजा क्यों ?”
स्वामी विवेकानंद कुछ देर तक कुछ सोचते रहे। उनके अगल-बगल बैठकर संत के शिष्य दोनों की बातें सुन रहे थे।
अचानक स्वामी ने एक शिष्य से कहा, “क्या तमाशा बना रखा है। आपके गुरु आपके सामने बैठे हैं फिर भी उनकी फोटो यहां रखी हुई है। इसे फैंको यहां से।” और जैसे ही स्वामी ने फोटो फैंकने के लिए उस पर हाथ लगाया, उनके बगल में खड़ा एक शिष्य उनका हाथ पकड़कर बोला, “आपने हमारे गुरु का अपमान किया है। क्या आपके देश में संतों का इसी तरह अपमान किया जाता है ?”
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विवेकानंद बोले, “नहीं, हमारे देश में संतों की उपासना की जाती है। मैं तो आपके गुरु के प्रश्न का जवाब दे रहा था।”
फिर वह संत से बोले, “देख लिया आपने, आपके शिष्य आपकी फोटो का अनादर होते देखना नहीं चाहते क्योंकि आपकी फोटो में इन लोगों की श्रद्धा है। उसी तरह भगवान कण-कण में विराजमान हैं लेकिन जो लोग मूर्ति पूजा करते हैं, उन्हें भगवान उसी में दिखाई पड़ते हैं।
यह श्रद्धा और विश्वास है कि हमारे यहां के लोग भगवान को कहीं भी खोज लेते हैं पत्थर के मूर्ति में और पेड़ में भी।” इस पर संत और उनके शिष्य निरुत्तर हो गए।
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