Edited By Prachi Sharma,Updated: 18 Apr, 2025 01:48 PM
उन दिनों स्वामी विवेकानंद देश भ्रमण में लगे थे। साथ में उनके एक गुरु भाई भी थे। किसी नई जगह जाने पर उनकी सबसे पहली तलाश किसी अच्छे पुस्तकालय की रहती। एक जगह एक पुस्ताकलय ने उन्हें बहुत आकर्षित किया।
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Swami Vivekananda Story: उन दिनों स्वामी विवेकानंद देश भ्रमण में लगे थे। साथ में उनके एक गुरु भाई भी थे। किसी नई जगह जाने पर उनकी सबसे पहली तलाश किसी अच्छे पुस्तकालय की रहती। एक जगह एक पुस्ताकलय ने उन्हें बहुत आकर्षित किया।
उन्होंने सोचा क्यों न यहां थोड़े दिनों तक डेरा जमाया जाए। उनके गुरुभाई उन्हें पुस्तकालय में संस्कृत और अंग्रेजी की नई-नई किताबें लाकर देते थे। स्वामी जी उन्हें पढ़कर अगले दिन वापस कर देते।
रोज नई किताबें वह भी पर्याप्त पृष्ठों वाली इस तरह से देते एवं वापस लेते हुए उस पुस्तकालय का अधीक्षक बड़ा हैरान हो गया। उसने स्वामी जी के गुरु भाई से कहा-क्या आप इतनी सारी नई-नई किताबें केवल देखने के लिए ले जाते हैं ? यदि इन्हें देखना ही है तो मैं यहीं पर दिखा देता हूं। रोज इतना वजन उठाने की क्या जरूरत है। इस पर स्वामी जी के गुरु भाई ने कहा जो आप समझते हैं वैसा कुछ भी नहीं है। हमारे गुरु भाई इन सब पुस्तकों को पूरी गंभीरता से पढ़ते हैं फिर वापस कर देते हैं।
इस उत्तर से आश्चर्यचकित हो लाइब्रेरियन ने कहा, ‘‘यदि ऐसा है तो मैं उनसे मिलना चाहूंगा।’’ अगले दिन स्वामी जी उससे मिले और कहा कि मैंने न केवल उन किताबों को पढ़ा है बल्कि उनको याद भी कर लिया है। इतना कहते हुए स्वामी ने वापस की गई किताबों के कई महत्वपूर्ण अंशों को सुना दिया।
लाइब्रेरियन चकित रह गया। उसने उनकी याददाश्त का रहस्य पूछा।
स्वामी जी बोले, ‘‘अगर पूरी तरह एकाग्र होकर पढ़ा जाए तो चीजें दिमाग में अंकित हो जाती हैं। पर इसके लिए आवश्यक है कि मन की धारण शक्ति अधिक से अधिक हो और वह शक्ति अभ्यास से आती है।